यह दिव्य प्रसाद प्रिया प्रिय कौ।दरसत ही मन मोद ....पाप हरत हिय कौ।। मधुर स्वर श्रीमती गायत्री शारदा

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  • Опубликовано: 26 авг 2024
  • यह दिव्य प्रसाद प्रिया प्रिय कौ।
    दरसत ही मन मोद बढावत, परसत पाप हरत हिय कौ ।।
    पावत परम प्रेम उपजावत, भुलवत भाव पुरुष तिय कौ।
    भगवतरसिक भावतो भूषण, तिहि छिन होत जुगल जिय कौ ।।
    भावार्थ: श्रीयुगल के प्रसार की महिमा का वर्णन
    करते हुए श्रीभगवत रसिकजी कहते हैं कि प्रिया प्रियतम का यह प्रसाद दिव्य है। नजर पड़ते ही, मन के आनंद को बढाने लगता है, स्पर्श करते ही हृदय के पापों को हर लेता है और ग्रहण करते ही विशुद्ध प्रेम उत्पन्न कर देता है। (केवल इतना ही नहीं) यह प्रसाद स्त्री अथवा पुरुष होने के भाव का विस्मरण कराकर साधक को तुरंत ही श्री युगल के हृदय मनभाया आभूषण (हार) बना देता है ।

Комментарии • 1

  • @gayatrisarda4439
    @gayatrisarda4439 Месяц назад

    ऐसे ही हमें भाव रूपी प्रसाद मिलता रहे 👍❤🙏🙏