एक नहीं दो नहीं चार चार अजगर का पूरा परिवार एक ही नाले में देखने को मिले फिर उनको पकड़ा गया है
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- Опубликовано: 28 сен 2024
- अजगर (Python) एक विशालकाय नाग है। यह एक विषहीन नाग प्रजाति है जो एशिया, अफ़्रीका और ऑस्ट्रेलिया के वनो में पायी जाती है।
साँप" या "सर्प", पृष्ठवंशी सरीसृप वर्ग का प्राणी है। यह जल तथा थल दोनों जगह पाया जाता है। इसका शरीर लम्बी रस्सी के समान होता है जो पूरा का पूरा स्केल्स से ढँका रहता है। साँप के पैर नहीं होते हैं। यह निचले भाग में उपस्थित घड़ारियों की सहायता से चलता फिरता है। सांपों के स्पष्टतः कान भी नहीं होते, बल्कि इनमें आंतरिक ध्वनि-तंत्र होता है। इनमें कान के पर्दे कि बजाय एक बेहद छोटी आंतरिक हड्डी होती है, जो बेहद संवेदनशील होती है। पहले ध्वनि भूमि द्वारा त्वचा ग्रहण करती है और फिर धमनियों द्वारा मस्तिष्क के पास कि हड्डी तक पहुँचती है। जब हवा से ध्वनि आती है, तो मस्तिष्क के कंकाल में कंपन होने से आवाज सुनाई देती है। इसकी आँखों में पलकें नहीं होती, ये हमेशा खुली रहती हैं। साँप विषैले तथा विषहीन दोनों प्रकार के होते हैं। इसके ऊपरी और निचले जबड़े की हड्डियाँ इस प्रकार की सन्धि बनाती है जिसके कारण इसका मुँह बड़े आकार में खुलता है। इसके मुँह में विष की थैली होती है जिससे जुडे़ दाँत तेज तथा खोखले होते हैं अतः इसके काटते ही विष शरीर में प्रवेश कर जाता है। दुनिया में साँपों की कोई २५००-३००० प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिनमे से भारत में जहरीला सर्पो की ६९ प्रजाति ज्ञात्त है जिनमे से २९ समुद्री सर्प तथा ४० स्थलीय सर्प है जहरीले सर्प के सिर में जहरीला संचालक तथा ऊपरी जबड़े में एक जोड़ी जबड़े पाये जाते है । बिषहीन सर्पो के काटने पर अनेको छोटे गड्ढे सेमि सरकल में पाये जाते है।जबकि बिषाक्त सर्पो में केवल दो गहरे गड्ढे पाये जाते है। इसकी कुछ प्रजातियों का आकार १० सेण्टीमीटर होता है जबकि अजगर नामक साँप २५ फिट तक लम्बा होता है। साँप मेढक, छिपकली, पक्षी, चूहे तथा दूसरे साँपों को खाता है। यह कभी-कभी बड़े जन्तुओं को भी निगल जाता है।
सांप या सर्प, पृष्ठवंशी सरीसृप वर्ग का प्राणी है। यह जल तथा थल दोनों जगह पाया जाता है। इसका शरीर लम्बी रस्सी के समान होता है जो पूरा का पूरा स्केल्स से ढँका रहता है। इसके मुँह में विष की थैली होती है जिससे जुडे़ दाँत तेज तथा खोखले होते हैं अतः इसके काटते ही विष शरीर में प्रवेश कर जाता है। दुनिया में सांपों की कोई २५००-३००० प्रजातियाँ पाई जाती हैं। सर्पों से मनुष्य आदि काल से ही डरता आया है। उस समय मनुष्य नहीं समझते थे कि सभी सर्प विषधर नहीं होते। अत: सर्प के काटने से विष नहीं चढ़ता था तो समझा जाता था कि यह मंत्र का प्रभाव है। साँप के काटे पर मंत्र का प्रयोग करना बड़ी उपयोगी विद्या मानी जाती है। वैदिक युग में सर्पविद्या की भी गणना अन्य विद्याओं में की जाती थी। सर्पों को प्रसन्न करने के लिए मंत्र का प्रयोग होता था। इस समय भी सर्पदंश के विष को दूर करने के लिए कई प्रकार के मंत्र काम में लाए जाते थे।
सर्पदोश से बच्ने के लिये मंत्रों का प्रयोग।
दुनिया में सांपों की कोई २५००-३००० प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसकी कुछ प्रजातियों का आकार १० सेण्टीमीटर होता है जबकि अजगर नामक साँप २५ फिट तक लम्बा होता है। साँप मेढक, छिपकली, पक्षी, चूहे तथा दूसरे साँपों को खाता है। यह कभी-कभी बड़े जन्तुओं को भी निगल जाता है। हिंदू नागपंचमी पर सर्पों की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि साँप के काटने पर जब मंत्र का प्रयोग किया जाता है तो काटा हुआ मनुष्य प्रभावित होकर कभी कभी बात करने लगता है। यह संभव है कि ऐसे मनुष्य को विषहीन सर्प ने काटा हो। उस मनुष्य की बात साँप की बात मानी जाती है और मंत्रप्रयोक्ता उससे आग्रह करता है कि वह उस मनुष्य को छोड़ दे। ऐसा भी कहा जाता है कि मंत्रशक्ति से काटनेवाला सर्प वहाँ आ जाता है और कभी कभी अपने विष को वापिस चूस लेता है। परंतु यह केवल एक कोरी कल्पना या अंधविश्वास भी हो सकता है। सर्पदंश पर मंत्रप्रयोग की कई विधियाँ हैं। कोई नीम के झौरे से, कोई झाडू से और कोई शास्त्र के द्वारा या अन्य विधि से मंत्र बोलकर विष उतारता है। हालाँकि आधुनिक युग में बहुत कम लोग इस प्रकार के मंत्रों के प्रयोग में विश्वास रखते है।
Good job
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Welldone 👏👏👏
Mene socha bin Baja ke pakdoge 😂
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Bahut achchabhai
Bindas