उज्जैन स्तिथ हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर दर्शन | मध्य प्रदेश | 4K | दर्शन 🙏
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- Опубликовано: 7 фев 2025
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लेखक: याचना अवस्थी
भक्तों, हमारे यात्रा कार्यक्रम दर्शन में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन.. हम आपको अपने इस कार्यक्रम के माध्यम से ऐतिहासिक और पौराणिक धरोहर से सम्रद्ध हमारे देश के विभन्न तीर्थ स्थानों, मंदिरों और धामों की यात्रा करवाते आये हैं... आज इसी क्रम में हम आपको जगत जननी के 51 शक्तिपीठों में से प्राचीन नगरी उज्जैन स्थित जिस शक्तिपीठ के दर्शन करवाने जा रहे हैं... वो है हरसिद्धि माता मंदिर.. जहाँ माता सती के हाँथ की कोहनी गिरी थी...
मंदिर के बारे में:
भक्तों,, मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में शिप्रा नदी के रामघाट के नजदीक भैरव पर्वत पर स्थित श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर प्राचीन रूद्रसागर के किनारे स्थित है।कहते हैं माता सती के बायें हाथ की कोहनी के रूप में उनके शरीर का 13वां हिस्सा यहाँ गिरने से ये स्थान भगवती के 51 शातिपीथों में 13वें स्थान पर है.. हालाँकि कुछ विद्वानों का मत है कि गुजरात में द्वारका के निकट गिरनार पर्वत के पास जो हर्षद या हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर है वही वास्तविक शक्तिपीठ है। जबकि उज्जैन के इस मंदिर के विषय में कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य स्वयं माता हरसिद्धि को गुजरात से यहां लाये थे। अतः दोनों ही स्थानों पर हरसिद्धि माता शक्तिपीठ की सामान मान्यता है। हरसिद्धि माता के इस शक्तिपीठ मंदिर की पूर्व दिशा में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एवं पश्चिम दिशा में शिप्रा नदी के रामघाट हैं। कुछ गुप्त साधक यहां विशेषरूप से नवरात्र में गुप्त साधनाएं करने आते हैं। इसके अतिरिक्त तंत्र साधकों के लिए भी यह स्थान विशेष महत्व रखता है। यह पवित्र स्थान बारहों मास तपस्वियों और भक्तों की भीड़ से भरा रहता है। माता हरसिद्धि का यह मंदिर शक्तिपीठ होने की वजह से भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है।
मंदिर का इतिहास:
कहते हैं हरसिद्धि माता का यह मंदिर राजा विक्रमादित्य के समय का होने की वजह से यह लगभग 2000 साल प्राचीन मंदिर माना जाता है मुग़ल शासन के दौरान जब बहुत से मंदिरों और उनमे स्थित देवी देवताओं की मूर्तिओं को नष्ट किया जा रहा था तो हरसिद्धि माता का यह मंदिर भी इससे प्रभावित हुआ.. फिर एक लम्बे समय के बाद मराठा शासन काल में मराठा शासकों ने अपने शासन के दौरान इस क्षेत्र के लगभग सभी प्राचीन मंदिरों का जिर्णोद्धार करवाया। जिसमें हरसिद्धि माता मंदिर भी एक था।
मंदिर का गर्भग्रह:
मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते ही आपको तीन माताओं की मूर्तियों के दर्शन होते हैं जिसमें सबसे ऊपर माता अन्नपूर्णा, मध्य में माता हरसिद्धि और नीचे माता सरस्वती देवी श्रीयंत्र पर विराजती हैं। माता की यह प्रतिमा किसी व्यक्ति विशेष द्वारा दिया गया आकार नहीं बल्कि यह एक प्राकृतिक आकार में है जिस पर हल्दी और सिन्दूर से श्रृंगार किया गया है। जहाँ भक्त माता के चरणों में शीश नवा कर उनसे अपनी मनोरथ सिद्धि की प्रार्थना करते हैं... शिवपुराण के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। श्री हरसिद्धि मंदिर के गर्भगृह के सामने सभाग्रह में ऊपर की ओर एक श्री यन्त्र निर्मित भी है। इस यंत्र के साथ ही 51 देवियों के चित्र व उनके बीज मंत्र भी चित्रित हैं। श्रीयंत्र के पास कृष्ण लीलाओं का भी सुन्दर चित्रण किया गया है .. कहा जाता है कि यह सिद्ध श्री यन्त्र है और इस महान यन्त्र के दर्शन मात्र से ही भक्तों को पुण्य प्राप्त होता है।
मंदिर परिसर एवं वास्तुकला:
मंदिर परिसर के बाहर ही भोग प्रसाद, फूल माला एवं पूजा सामग्री की कुछ दुकाने हैं जहाँ से श्रद्धालु माता को अर्पित करने के लिए प्रसाद खरीद सकते हैं...अगर हरसिद्धि माता के इस मंदिर के परिसर और इसकी वास्तुकला की बात करें तो इस मंदिर का जीर्णोद्धार मराठा काल में होने के वजह से इसकी वास्तुकला में मराठाकालीन झलक देखने को मिलती है। मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर भैरव जी की मूर्तियां हैं। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही माता के वाहन सिंह की प्रतिमा के दर्शन होते हैं। द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो सुबह और शाम की आरती के समय बजाए जाते हैं। मुख्य मंदिर के चारों ओर परकोटा है, जिसमें चारों दिशाओं में द्वार बने हुए हैं। द्वार पर सुंदर जंगले बने हुए हैं। मंदिर के दक्षिण - पूर्वी द्वार के पास बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत् 1447 अंकित है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया तथा हनुमान जी का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित रहती है तथा दोनों नवरात्रों के अवसर पर उनकी महापूजा होती है। मंदिर परिसर में श्री चिंतामण गणेश जी का भी मंदिर है जहाँ भक्त भगवान् गणेश का दर्शन पूजन करते हैं...यह मंदिर आकार में बहुत बड़ा और भव्य नहीं है, लेकिन मंदिर और मंदिर प्रांगण की स्वच्छता और व्यवस्था को देखकर मन प्रसन्न हो उठता है।
दीप स्तम्भ - विशेष आकर्षण:
मंदिर के प्रांगण में हरसिद्धि माता सभाग्रह के ठीक सामने लगभग 51 फीट ऊंचे दो दीप स्तंभ बने हुए हैं जो नर-नारी या शिव - शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। दाहिनी ओर का स्तंभ बडा़ है, जबकि बांई ओर का छोटा है। कहते हैं इन दीप स्तंभों की स्थापना राजा विक्रमादित्य ने करवाई थी। ये दीप स्तंभ 2 हजार साल से अधिक पुराने हैं। इनमें से एक दीप स्तंभ पर 501 दीपमालाएँ हैं, जबकि दूसरे स्तंभ पर 500 दीपमालाएँ हैं। दोनों दीप स्तंभों पर नवरात्र तथा अन्य विशेष अवसरों पर दीपक जलाए जाते हैं। इन 1001 दीपकों को जलाने में एक समय में लगभग 45-50 लीटर तेल लग जाता है।
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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जय मां हरसिद्धि
Shree Harsiddhi Maiya ji ki Jai
Har Har Mahadev 🌅🌈🙏🙏🙏🙏🙏🙏🥭🥭🥭🥭🥭🥭🥭🥭🍎🌷🌺🌷🌺🌷🌷🌺🌺🌷🌺🌷🌷🌺🌺🌷🌺🌷🌷
जय श्री भगवान महाकाल की जय मां हरसिद्धि मैया की माता के चरण कमलों में कोटि कोटि प्रणाम करता हूं 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🌷🌷
🙏🌹 हर हर महादेव जय बाबा भोलेनाथ 🌹🙏
🙏🌺JAI SHREE UJJAIN KE MAHARAJA JI🙏🌺
🙏🌺JAI SHREE MAHAKAL BGAGWAN JI🙏🌺
🙏🌺JAI SHREE MAA HARSIDDHI JI🙏🌺
Jai Mata Di!
Jai Harsiddhi Mai 🥰🙏🙇♂️🚩
जय श्री नारायण लक्ष्मी मां
Jai mata di 🙏🏻
जय सियाराम
जय माता दी 🙏🙏 किरपा करके दाया कीजिए माता
जय माॅ हरसिद्धि
Jai Mata Di
🕉️ Jay MATA Di 🕉️
जय जग जननी
Jai maa ❤️❤️🙏🙏
જય હો🚩🌹🌺🙏
जय माता
Jai sabhi hindu 🕉️buddha ☸️jain 💜devi devta❤🥰😍🔱👑🧡🚩🙏
Chotila ka video kab aayega