अंकित जी, नहीं 24 अवतार नहीं -शायद 12 अवतार माने जाते हैं -शुरुआत कच्छप या मतस्य से है। आप काफी ठीक कह रहे हैं। ये अनेक कथाएँ शंकराचार्य जी के पहले के समय में बनाई गयी थीं, हिंदुओं को अन्य पंथों -विशेषतया बौद्ध और जैन , के विरुद्ध संगठित रखने के लिए। अधिकतर भक्तियोग का प्रयोग किया गया था। ये ही उद्देश्य तुलसीदास जी की रामचरित मानस ने मुस्लिम्स के विरोध में पूरा किया। तो ये कथाएँ हमारे आम जन मानस के अंदर तक समाई हुई हैं। अभी हमें अर्थात हिन्दू/सनातन धर्म को संगठित रहना है। आपस में चर्चा तो करनी है परंतु एक दूसरे के विश्वास को एकदम ठेस नहीं पन्हुचानी है। केवल समझाना है जैसा आप कर रहे हैं । परंतु संगठित रहना बहुत आवश्यक है। सादर
ईश्वर तो सर्वव्यापक है वो हर जगह है उसमे आने जाने की क्रिया नही होती। उसने शिक्षा देने के लिए वेद ज्ञान दिया है जिसको पढकर समझकर व्यक्ति शिक्षा विद्या को ग्रहण कर सकता है
आचार्य अंकित आर्य जी नमस्ते 24 अवतारों की जानकारी दी बहुत ही सुंदर है l मेरा प्रश्न है की श्रीं कृष्ण जी अवतार नहीं थे ब्लकि एक श्रेष्ठ पुरुष थे l लेकिन अन्य अवतारों के बारे में भी बताएं जैसे कश्यप, वराह, नरसिंह आदि क्या ये सभी भी श्रेष्ठ पुरुष थे या कोरी कल्पना मात्र है
Bhagwan ye kabse sochne lag gaye ki ager mene ya kam ker diya to me chota ho jauga ager koi apne app ko ye samjhta he ki ue kary karne se me chota ya bada ho jauga to us vyakti se dhurth insan is pure duniya me nahi hoga Or app baat bhagwan ki ker rahe hae ager ko bhagwan ye sochta hae ki wo avtar ya ye kary ker lene se chota ho jayega to wo bhagwan hi nahi hae
तो क्या आचार्य जी रामायण के राम अवतार और महाभारत के कृष्ण अवतार भी नहीं हुए होंगे तो फिर क्या गीता ग्रंथ भी झूठा है और वाल्मीकि रामायण भी झूठी हो जाएगी इसके बारे में कुछ बताइए आचार्य जी नमस्ते
*चौबीस अवतार* जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों की इतनी अत्यधिक प्रतिष्ठा रही कि वैदिक और बौद्ध परम्परा ने भी उसका अनुसरण किया है। वैदिक परम्परा अवतारवादी है, इसलिए उसने तीर्थंकर के स्थान पर चौबीस अवतार की कल्पना की है। जब हम पुराण साहित्य का गहराई से अनुशीलन परिशीलन करते हैं तो स्पष्ट ज्ञात होता है कि अवतारों की संख्या एक सी नहीं है। भागवत पुराण में अवतारों के तीन विवरण मिलते हैं, जो अन्य पुराणों में प्राप्त होने वाली दशावतार परम्परा से किञ्चित् पृथक् हैं। भागवत में एक स्थान पर भगवान् के असंख्य अवतार बताए हैं।' दूसरे स्थान पर सोलह, बावीस और चौबीस को प्रमुख माना है। दशमस्कंध की एक सूची में बारह अवतारों के नाम गिनाए गए हैं। इससे दशावतारों की परम्परा का परिज्ञान होता है। उक्त सूची में आगे चलकर पांचरात्र वासुदेव के ही पर्याय विभवों की संख्या २४ से बढकर ३६ तक हो गई है। भागवत के आधार पर विकसित लघु-भागवतामृत में यह संख्या २५, तथा 'सात्वत तंत्र' में लगभग ४१ से भी अधिक हो गई है।' इस तरह मध्य- कालीन वैष्णव सम्प्रदायों में भी कोई सर्वमान्य सूची गृहीत नहीं हुई है। हिन्दी साहित्य में चौबीस अवतारों का वर्णन है उसमें भागवत की तीनों सूचियों का समावेश किया गया है। सूरदास, बारहह, रामानन्द, रज्जब, " बैजू, 'लखनदास, नाभादास आदि ने भी चौबीस अवतार का वर्णन किया है। इन चौबीस अवतारों में मत्स्य, वराह, कूर्म, आदि अवतार पशु हैं। हंस पक्षी है। कुछ अवतार पशु और मानव दोनों के मिश्रित हैं जैसे नृसिंह, हयग्रीव आदि। वैदिक परम्परा मे अवतारों की संख्या में क्रमशः परिवर्तन होता रहा है। जैन तीर्थंकरों की तरह उनका व्यवस्थित रूप नही मिलता। इतिहासकारों ने 'भागवत' की प्रचलित चौबीस अवतारो की परम्परा को जैनों से प्रभावित माना है। श्री गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का मन्तव्य है, कि चौबीस अवतारों की यह कल्पना भी बौद्धों के चौबीस बुद्ध और जैनों के चौबीस तीर्थंकरों के आधार पर हुई है।"
*चौबीस बुद्ध* भागवत में जिस प्रकार विष्णु, वासुदेव या नारायण अनेक अवतारों की चर्चा की गई है, उसी प्रकार लंकावतार सूत्र मे कहा गया है कि बुद्ध अनन्त रूपों में अवतीर्ण होंगे, और सर्वत्र अज्ञानियों में धर्म देशना करेंगे। लंकावतार में भागवत के समान चौबीस बुद्धों का उल्लेख मिलता है। सूत्रालंकार में बुद्धत्व प्राप्ति के लिए प्रयत्न का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि कोई भी पुरुष प्रारम्भ से ही बुद्ध नहीं होता। बुद्धत्व को उपलब्धि के लिए पुण्य और ज्ञान-संभार की आवश्यकता होती है। तथापि बुद्धों की संख्या में अभिवृद्धि होती गई। प्रारम्भ में यह मान्यता रही कि एक साथ दो बुद्ध नहीं हो सकते, किन्तु महायान मत ने एक समय में अनेक बुद्धों का अस्तित्व स्वीकार किया है। उनका मन्तव्य है कि एक लोक में अनेक बुद्ध एक साथ नहीं हो सकते ।" इससे बुद्धों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई। संदर्भ पुंडरीक में अनन्त बोधिसत्व बताए गए हैं ,और उनकी तुलना गंगा के रेती के कणों से की गई है। इन सभी बोधिसत्वों को लोकेन्द्र माना है। उसके पश्चात् यह उपमा बुद्धों के लिए रूढ़ सी हो गई। लंकावतार सूत्र में यह भी कहा गया है कि बुद्ध किसी भी रूप को धारण कर सकते हैं, कितने ही सूत्रों में यह भी बताया गया है कि गंगा की रेती के समान असंख्य बुद्ध भूत, वर्तमान और भविष्य में तथागत रूप होते हैं।" जैसे विष्णुपुराण और भागवत में विष्णु के असंख्य अवतार माने गए हैं वैसे ही बुद्ध भी असंख्य अवतरित होते हैं। जहाँ भी लोग अज्ञान अंधकार में छटपटाते हैं ,वहाँ पर बुद्ध का धर्मोपदेश सुनने को मिलता है। बौद्ध साहित्य में प्रारंभ में पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए बुद्ध के असंख्य अवतारों की कल्पना की गई, किन्तु बाद में चलकर बुद्ध के अवतारों की संख्या ५, ७, २४ और ३६ तक सीमित हो गई। जातक-कथाओं का। दूरेनिदान, अविदूरेनिदान, और सन्तिकेनिदान के नाम से जो विभाजन किया गया है उनमें से दूरेनिदान मे एक कथा इस प्रकार प्राप्त होती है :- "प्राचीनकाल में एक सुमेध नामक परिव्राजक थे। उन्हीं के समय दीपंकर बुद्ध उत्पन्न हुए। लोग दीपंकर बुद्ध के स्वागत हेतु मार्ग सजा रहे थे। सुमेध परिव्राजक उस कीचड़ में मृगचर्म बिछाकर लेट गया। उस मार्ग से जाते समय सुमेध की श्रद्धा व भक्ति को देखकर बुद्ध ने भविष्यवाणी की - "यह कालान्तर में बुद्ध होगा।" उसके पश्चात् सुमेध ने अनेक जन्मों में सभी पारमिताओं की साधना पूर्ण की। उन्होंने विभिन्न कल्पों में चौबीस बुद्धों की सेवा की और अन्त में लुम्बिनी में सिद्धार्थ नाम से उत्पन्न हुए।" प्रस्तुत कथा में पुनर्जन्म की सिद्धि के साथ ही विभिन्न कल्पों में चौबीस बुद्ध हुए यह बताया गया है। भदन्त शान्तिभिक्षु का मन्तव्य है कि ईसा पूर्व प्रथम या द्वितीय शताब्दी मे चौबीस बुद्धों का उल्लेख हो चुका था।
Chobis budh nahi 28 budh hue hae chacha kya keh rahe ho app ko khud ko nahi malum su i sunai batto ko sunker ajjate ho 28 budh hue he jinme se antim budh Gautam budh the
*तीर्थंकर अवतार नहीं* एक बात स्मरण रखनी चाहिए कि जैन धर्म ने तीर्थंकर को ईश्वर का अवतार या अंश नही माना है, और न देवी सृष्टि का अजीव प्राणी ही स्वीकार किया है। उसका यह स्पष्ट मन्तव्य है कि तीर्थंकर का जीव अतीत में एक दिन हमारी ही तरह वासना के दल-दल मे फंसा हुआ था। पाप रूपी पंक से लिप्त था। कषाय की कालिमा से कलुषित था, मोह की मदिरा से मत्त था। आधि व्याधि और उपाधियों से त्रस्त था। हेय, ज्ञेय और उपादेय का उसे तनिक भी ध्यान नही था। वैराग्य से विमुख रहकर वह विकारों को अपनाता था। उपासना को छोड़कर वासना का दास बना हुआ था। त्याग के बदले वह राग में फंसा हुआ था। भौतिक व इन्द्रियजन्य सुखों को सच्चा सुख समझकर पागल की तरह उसके पीछे दौड़ रहा था, किन्तु एक दिन महान् पुरुषों के संग से उसके नेत्र खुल गये। भेद-विज्ञान की उपलब्धि होने से तत्त्व की अभिरुचि जागृत हुई सही व सत्य स्थिति का उसे परिज्ञान हुआ। किन्तु कितनी ही बार ऐसा भी होता है कि मिथ्यात्व के पुनः आक्रमण से उसके ज्ञान नेत्र धुंधले हो जाते हैं, और वह पुनः मार्ग को विस्मृत कर कुमार्ग पर आरूढ़ हो जाता है, और लम्बे समय के पश्चात् पुनः सन्मार्ग पर आता है, तब वासना से मुँह मोड़कर साधना को अपनाता है, उत्कृष्ट तप व संयम की आराधना करता हुआ एक दिन भावो की परम निर्मल अवस्था से तीर्थंकर नाम कर्म का बंधन करता है और फिर वह तृतीय भव से तीर्थंकर बनता है किन्तु यह भी नही भूलना चाहिए, कि जब तक तीर्थंकर का जीव संसार के भोग-विलास में उलझा हुआ है, सोने के सिहासन के मोह में फंसा हुआ है, तब तक वह वस्तुतः तीर्थंकर नहीं है। तीर्थंकर बनने के लिए उस अन्तिम भव मे भी राज्य-वैभव को छोड़ना होता है। श्रमण बन कर स्वयं को पहले महाव्रतो का पालन करना होता है, एकान्त शान्त निर्जन स्थानों में रहकर आत्म-मनन करना होता है, भयंकर से भयंकर उपसर्गों को शान्त भाव से सहन करना होता है। जब साधना से ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्म नष्ट होते हैं, तब केवलज्ञान केवलदर्शन की प्राप्ति होती है। उस समय वे साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप तीर्थ की स्थापना करते हैं तब वस्तुतः तीर्थंकर कहलाते हैं। *अवतार-वाद और उत्तार-वाद* वैदिक परम्परा का विश्वास अवतार-वाद में है। गीता के अभिमत अनुसार ईश्वर, अजर-अमर, अनन्त और परात्पर होने पर भी अपनी अनन्तता को अपनी माया शक्ति से संकुचित कर शरीर को धारण करता है। अवतार-वाद का सीधा सा अर्थ है, ईश्वर का मानव के रूप में अवतरित होना, मानव शरीर से जन्म लेना। गीता की दृष्टि से ईश्वर तो मानव बन सकता है किन्तु मानव कभी ईश्वर नहीं बन सकता। ईश्वर के अवतार लेने का एक मात्र उद्देश्य है, सृष्टि में चारों ओर जो अधर्म का अंधकार छाया हुआ होता है उसे नष्ट कर धर्म का प्रकाश, साधुओं का परित्राण, दुष्टों का नाश और धर्म की स्थापना करना । जैन धर्म का विश्वास अवतार-वाद में नहीं उत्तार-वाद में है। अवतार-वाद में ईश्वर को स्वयं मानव बनकर पुण्य-पाप करने पड़ते हैं। भक्तों की रक्षा के लिए उसे संहार भी करना पड़ता है। स्वयं राग-द्वेष से मुक्त होने पर भी भक्तों के लिए उसे राग भी करना पड़ता है और द्वेष भी। वैदिक परम्परा मे विचारकों ने इस विकृति को लीला कहकर उस पर आवरण डालने का प्रयास किया है। जैन दृष्टि से मानव का उत्तार होता है। वह प्रथम विकृति से संस्कृति की ओर बढ़ता है, फिर प्रकृति में पहुँच जाता है। राग-द्वेष युक्त जो मिथ्यात्व की अवस्था है वह विकृति है। राग-द्वेष मुक्त जो वीतराग अवस्था है वह संस्कृति है। पूर्ण रूप से कर्मों से मुक्त जो शुद्ध सिद्ध अवस्था है वह प्रकृति है। सिद्ध बनने का तात्पर्य है कि अनन्त काल के लिए अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्त शक्ति में लीन हो जाना। वहाँ कर्म-बंध और कर्म-बंध के कारणों का सर्वथा अभाव होने से जीव पुनः संसार में नहीं आता। उत्तार-वाद का अर्थ है मानव का विकारी जीवन से ऊपर उठकर भगवान के अधिकारी जीवन तक पहुँच जाना, पुनः उसमे कदापि लिप्त न होना। तात्पर्य यह है कि जैन धर्म का तीर्थंकर ईश्वरीय अवतार नही है। जो लोग तीर्थंकरों को अवतार मानते हैं वे भ्रम में हैं। जैन धर्म का यह वज्र आघोष है, कि प्रत्येक व्यक्ति साधना के द्वारा आन्तरिक शक्तियों का विकास कर तीर्थंकर बन सकता है। तीर्थंकर बनने के लिए जीवन में आन्तरिक शक्तियों का विकास परमावश्यक है। संकलित..✍️
अवतारवाद के सिद्धांत ने एक और तो ईश्वर के सर्वशक्तिमान,अगोचर और निराकार स्वरूप का खण्डन किया,तथा इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया कि यदि ईश्वर एक गर्भ से जन्म लेकर सीमित और स्थान पर आ गए तब शेष श्रष्टि स्वयं कैसे चलती रही? दूसरा यह कि एक ही काल में दो दो अवतार राम और परशुराम हुए और आश्चर्य यह की दोनो धनुष यज्ञ में एक दूसरे से उलझ गए और नहीं पहचान पाए, यह अज्ञान ईश्वर में क्यों आया? यह भी कि भगवान कृष्ण ने जब अर्जुन से कहा कि जब जब धर्म की हानि होती है तो में जन्म लेता हूं, यदि धर्म की हानि ही अवतार का कारण है, तो आज धर्म के पतन पर भगवान क्यों नहीं आए? यह भी यदि अवतार ही उद्धारक हैं तब श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को स्वयं लड़ने को क्यों कहा? क्या अवतारवाद के कारण हम अकर्मण्य और कायर नहीं हुए? आज भी दुनिया से पिटते और सिमटते हुए हम विनष्ट होने के कगार पर है कोई अवतार नहीं आ रहा है। अरे भाई! यदि भगवान कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर चक्र उठा सकते हैं इससे भी समझ नही आया कि रक्षा कैसे की जाती है। क्या शिवाजी,महाराणा प्रताप, लक्ष्मीबाई,भगत सिंह अवतार से कम थे? इन्हे भी अवतार मानो। सच्चाई यह है अपने महान कार्यों से राम,कृष्ण,बुद्ध,महावीर महान हुए और अपने पराक्रम, बल,बुद्धि और न्याय से संसार का पालन करने के कारण इन्हें भगवान विशेषण दिया गया।
Sarvpratham to app ishwer or bhagwan ke bich me anter Jann ke shre krishn ram siv bramha or Vishnu ko bhagwan kaha jata hae na ki ishwer jese devta or ishwer me anter hae usi prakar ishwer or bhagwan me anter hae
जैन धर्म में अवतार की कोई अवधारणा नहीं है । प्रत्येक तीर्थंकर के माता-पिता, जन्म स्थान आदि का जैन शास्त्रों में विधिवत उल्लेख है । भगवान ऋषभदेव के माता-पिता नाभिराय और माता मरुदेवी का स्पष्ट उल्लेख है । यही श्रीमद्भागवत में वर्णित है ।
Acharya ji ishwar aap ko salamat rakhe aur sahi ilam ata kare mujhe aapki video dekhna pasand hai aap Satya ki jo me lage ho achhi baat hai lekin jankari poori na hone ki wajah se aap kabhi kabhi bhatak jate Hain aapka purpose only kisi 1 jaati vishesh ko bhatakane se bachaane ka nahi hona chahiye balki all worlds ko bhatakane se bachaane ka purpose hona chahiye hame aap se aisi aasha hai Aap ne es video me 1 ek galti ki hai ki Hazarat Mohammad sahab ne apne aap ko ishwar kaha hai jo galat hai Islam dharm ke doosre kalma me saaf saaf hai ki ishwar ke Shiva koi ibaadat ke laayak nahi hai Hazrat Muhammad ishwar ke Nek Bande aur aakhiri Rasool hain Meri baat ka galat na samjhe I am best your friend
Pradhan mantri wala tark diya appne Pradhan mantri ko ko avshykta nahi he ki wo jaker ke pradhan banne tab jaker ke kam hoga wo adesh dega or pradhan ko kam kerna hoga To fir ishwer bhi adesh dege kyoki esa to nahi ho sakta ki ravan ko ak hi shan me mar diya nahi ho sakta uske leye ishwer ne bhi adesh diya hoga or use wo kary kerna hoga ishwer kis adesh ka palan kerna hhoga kyo ki wo sarvshakti man hae Or ishwer ko waha anne ki avshyakta hi nahi hae or na hu. Shre ram ki ishwer keh rahe hae app bhagwan or ishwer ko ak samjh eahe hae isme app ki galti hae
अगर अवतार वाद एक कहानी है तो तुम लोग जो सुना रहे हो वो भी कहानी है जो तुम्हारे झूठ प्रकाश में लिखीं हुई है पढ़ा है मैने उसमे शिवाय दूसरो की बुराई के कुछ भी नही है
नमस्कार आपने बहुत अच्छे ज्ञान दिया है लेकिन आपका ज्ञान मुझे पूर्ण नहीं लगता है। भगवान, ईश्वर ,ब्रह्म ,परमेश्वर इन सभी की परिभाषा आप नहीं कर पा रहे हैं। इन सभी में आप बहुत कन्फ्यूज्ड दिखाई दे रहे हैं। आशा है आप आचार्य प्रशांत जी को सुनेंगे इन विषयों पर तो शायद आपके कांसेप्ट क्लियर होंगे ।कृपया कर स्वाध्याय जरूर कीजिए आचार्य जी के विषय पर बहुत स्पष्ट ज्ञानवर्धक वीडियो उपलब्ध है यूट्यूब पर। आप भी कन्फ्यूज्ड है और आप अपने सुनने वालों को भी कन्फ्यूज्ड कर रहे हैं। जब ज्ञान पूर्ण ना हो तो नुकसान दायक है सभी के लिए ।आपके लिए भी और सुनने वालों के लिए भी।
भगवान भक्त के ईच्छा के पूर्ति हेतु जन्म लिए मनु शतरूपा ने वर मांगा आप पुत्र के रुप में हमारे यहा आये और भी कारण है ऐसा रामचरितमानस में है दुसरी बात धर्म यानि कर्तव्य का निबाह कैसे करे या उत्तम पुरुष के व्यवहार कैसे होने चाहिए इसका प्रटिकल कर्म का डेमो दिखाने के लिए ईश्वर अवतार ले सकते हैं, उनकी गाथाए मनुष्य को सुख देती है भक्ति देती है इसलिए अवतार लेना आवश्यक है, वे निराकार है पर साधारण जन को इस रुप का ज्ञान और साक्षात्कार करना कठिन है, सत्य और प्रेम ही उनकी प्रकृति है श्रधा पूर्वक सत्य का आचरण करने से मनुष्य उनका अनुभव कर सकते हैं ऐसा मेरा सोचना है । प्रणाम 🙏
दयानंद सरस्वती का ज्ञान अधूरा है आपके ज्ञान से लगता है,अगर दयानंद सरस्वती ने शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया होता, हिन्दू ओ जब-तक दयानंद सरस्वती वाले शंकराचार्य से शास्त्रार्थ आज के वक्त करने के बाद उनकी बातों को मानना,ऐ लोग अपने रोज़ी रोटी के लिए हिन्दू ओ को मूर्ख बना रहे हैं दयानंद सरस्वती को अपने पुस्तक का नाम जूठारथ प्रकाश रखना चाहिए,ईस आदमी ने भी सनातन के धर्म का पैसा लिया है, इसलिए ईस अधर्मी की बातें में आना मत,ईस लफंगे आदमी पर ऐफ आईं आर दर्ज किया जाए ओर रिमांड पर भेज दिया जाये
App bhagwan or ishwer me anter hi nahi malum hae or app baat avtaro ki ker rahe hae bhagwan vishnu ager ishwer hote to unhe ishwer Hari kehte na ki bhagwan Hari
@@d.slifestyle3737 kyo nahi ho sakte bhagwan ke avtar Gita me bhagwan swayam kehte hae ki jab jab prithvi per paap or atyachar bhadta hae tab me avtar leta hu uske ant ke leye abb bhagwat gita ko bhi app jutha mante he to fir wo app ki marzi Gita ka gyan shre krishn dwara diya gaya wo koi amm admi to nahi de sakta tha Krishna bhagwan avtar the app unhe mahapurush mano hum unhe bhagwan ka avtar mante hae ye apni apni soch hae
@@KIM_JONG_UN_MOTA_BHAI1008 ek or video me Iske bare mein details se likha hua hai aur bataya bhi hai main abhi Jara batata Hun Uska Isi Ka yah Prahari ka pahle pure padho per jakar baat karna bhai
Bhi sach gadbad he tumare sath koya bat nahi ye sab agyanta ka karn he simple Sa Funda hai use video ko pura Dekho aur video ka title hai ki kya Shri Krishna Bhagwan ka avtar Hai by prahari
@@d.slifestyle3737 inki yahi video dekhker me samajh gaya ki guruji kitne bade vidvan hae ye khud bahut se topics ko leker ke confused hae shre krishna ka jikr bhi purano ke hi through milega or jin purano ke through unaka gyan unke bare me jankari mil rahi hae use app log nakkar dete ho or baad me shre krishn or shree ram ko mahapurush ghosit ker dete ho wah kya baat hae sahi hae
Ravan ki tulna adhunik samy se ki ja rahi hae kaha ja raha he ki parmanu bum fek dete to kya ravan bhi shant rehta lanka ke pass appne astr shashtr nahi hote tark ke nam per bakwas kiye ja rahe ho app
@@d.slifestyle3737 Bhai unhone kaha ki parmanu bum fekh dege jis prakar se ravan ka vyaktitva tha kya uske pass parmanu bam nahi hoga wo khud common sense wali batt nahi ker rahe hae
दयानंद सरस्वती आधा सच्चा ओर आधा झूठा स्वामी लगता है,अगर ईस पाखंडी की बात सच्ची होती तो कीसी शंकराचार्य के साथ चर्चा का विडियो जरूर होता अगर चर्चा होती तो सत्यार्थ प्रकाश झूठा साबित होता
Bhagvan vishnu ji maharaj ke charnon me namaskar Namaskar Namaskar🙏🙏 h
Bhagvan shri hari ke charnon me pranaam h.. Unke 24 avtar hue h❤❤
Hari anant hari katha ananta
अद्भुत व्याख्यान आचार्य जी
आचार्य जी को सादर अभिवादन
Keep it up, you are doing well
🙏🙏
बहुत अच्छी जानकारी
आचार्य जी, सादर नमन । सहज प्रस्तुति के लिए साधुवाद। 🙏
Thanks God Bless You Khush Rahe Muskurate Rahe.. Bahut Sundar Bahut Achha Lage jankariya,..🌹🙏
Nice। Parva
ॐ के
कृणवतो आर्य 🎉
,
।।ओ३म् ।।
ॐ ॐ ॐॐॐॐ
नमस्ते ।Jai Nepal
Iswar aur वेद
इस उपयोगी जानकारी के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏💐💐
Cute cute kahani in Puran.
अंकित जी,
नहीं 24 अवतार नहीं -शायद 12 अवतार माने जाते हैं -शुरुआत कच्छप या मतस्य से है।
आप काफी ठीक कह रहे हैं। ये अनेक कथाएँ शंकराचार्य जी के पहले के समय में बनाई गयी थीं, हिंदुओं को अन्य पंथों -विशेषतया बौद्ध और जैन , के विरुद्ध संगठित रखने के लिए। अधिकतर भक्तियोग का प्रयोग किया गया था। ये ही उद्देश्य तुलसीदास जी की रामचरित मानस ने मुस्लिम्स के विरोध में पूरा किया। तो ये कथाएँ हमारे आम जन मानस के अंदर तक समाई हुई हैं।
अभी हमें अर्थात हिन्दू/सनातन धर्म को संगठित रहना है। आपस में चर्चा तो करनी है परंतु एक दूसरे के विश्वास को एकदम ठेस नहीं पन्हुचानी है। केवल समझाना है जैसा आप कर रहे हैं ।
परंतु संगठित रहना बहुत आवश्यक है।
सादर
नमस्ते आचार्य श्री
#jai_shri_ram ❤❤❤
thanks 🎉
🚩🕉️🌞🕉️🚩🙏🙏🙏
आचार्य प्रशांत 🪔✨🙏🏻
बहुत ही अच्छे तरह समझते हैं सभी को समझ sakate है
सादर नमस्ते आचार्य जी
आचार्य जी सादर प्रणाम
Om
Thanks sir👍👍👍👍👍👌👌👌👌👌👏👏👏👏💪💪💪
आचार्य जी सादर अभिवादन। भगवान ने अवतार मनुष्यों को शिक्षा देने के लिए। आचार्य जी ! क्या किसी की आलोचना करने से विश्व आर्य बन सकता है?
ईश्वर तो सर्वव्यापक है वो हर जगह है उसमे आने जाने की क्रिया नही होती। उसने शिक्षा देने के लिए वेद ज्ञान दिया है जिसको पढकर समझकर व्यक्ति शिक्षा विद्या को ग्रहण कर सकता है
शिक्षा देने के लिए पहला गुरु मां। मां के बाद शिक्षक होते हैं।
Bahut achha jankari apane diya thanks
आचार्य अंकित आर्य जी नमस्ते
24 अवतारों की जानकारी दी बहुत ही सुंदर है l मेरा प्रश्न है की श्रीं कृष्ण जी अवतार नहीं थे ब्लकि एक श्रेष्ठ पुरुष थे l लेकिन अन्य अवतारों के बारे में भी बताएं जैसे कश्यप, वराह, नरसिंह आदि क्या ये सभी भी श्रेष्ठ पुरुष थे या कोरी कल्पना मात्र है
भगवान है ? भगवान नहि? ये सब मानवि कल्पणा है समाज नियंत्रणासाठि बूधिवंतानि लढविलेल्या कल्पणा होथ!
वो परम ब्रह्म जो धर्म की स्थापना करने के लिए किसी के गर्भ में आकर जन्म न ले सके।वो कैसा परम ब्रह्म।
Ye baat ye log nahi samjh sakte or jo bhagwan ye soche ki me ye Kary kerne se chota ho jauga wo bhagwan ji kesa inke tark bina sir per ke hae
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
Bhagwan ye kabse sochne lag gaye ki ager mene ya kam ker diya to me chota ho jauga ager koi apne app ko ye samjhta he ki ue kary karne se me chota ya bada ho jauga to us vyakti se dhurth insan is pure duniya me nahi hoga
Or app baat bhagwan ki ker rahe hae ager ko bhagwan ye sochta hae ki wo avtar ya ye kary ker lene se chota ho jayega to wo bhagwan hi nahi hae
अति सुंदर ।।धन्यवाद।।
जय आर्य जय आर्यावर्त
Namaste ji
भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी
तो क्या आचार्य जी रामायण के राम अवतार और महाभारत के कृष्ण अवतार भी नहीं हुए होंगे तो फिर क्या गीता ग्रंथ भी झूठा है और वाल्मीकि रामायण भी झूठी हो जाएगी इसके बारे में कुछ बताइए आचार्य जी नमस्ते
Bhagvan to kuchh bhi kar sakten hai, Wai sakar rup bhi dharan kar sakten hai.
रावण या कंस को किसने मारा। Yadi भगवान ने जब जन्म नहीं लिया
Inke pita ji ne
Acharya ji satyarth prakash pustak kharidn kelia link veja ji, sahai pustak kharida Jay 🙏
अति सुंदर ।।धन्यवाद।।
24
Achrya g original ved I want wire
सभी कहानी है इसे कहानी ही समझनी चाहिए सत्य से इसका कोई लेना देना नहीं है
Acharyaji namaste
*चौबीस अवतार*
जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों की इतनी अत्यधिक प्रतिष्ठा रही कि वैदिक और बौद्ध परम्परा ने भी उसका अनुसरण किया है। वैदिक परम्परा अवतारवादी है, इसलिए उसने तीर्थंकर के स्थान पर चौबीस अवतार की कल्पना की है। जब हम पुराण साहित्य का गहराई से अनुशीलन परिशीलन करते हैं तो स्पष्ट ज्ञात होता है कि अवतारों की संख्या एक सी नहीं है। भागवत पुराण में अवतारों के तीन विवरण मिलते हैं, जो अन्य पुराणों में प्राप्त होने वाली दशावतार परम्परा से किञ्चित् पृथक् हैं। भागवत में एक स्थान पर भगवान् के असंख्य अवतार बताए हैं।' दूसरे स्थान पर सोलह, बावीस और चौबीस को प्रमुख माना है। दशमस्कंध की एक सूची में बारह अवतारों के नाम गिनाए गए हैं। इससे दशावतारों की परम्परा का परिज्ञान होता है। उक्त सूची में आगे चलकर पांचरात्र वासुदेव के ही पर्याय विभवों की संख्या २४ से बढकर ३६ तक हो गई है।
भागवत के आधार पर विकसित लघु-भागवतामृत में यह संख्या २५, तथा 'सात्वत तंत्र' में लगभग ४१ से भी अधिक हो गई है।' इस तरह मध्य- कालीन वैष्णव सम्प्रदायों में भी कोई सर्वमान्य सूची गृहीत नहीं हुई है।
हिन्दी साहित्य में चौबीस अवतारों का वर्णन है उसमें भागवत की तीनों सूचियों का समावेश किया गया है। सूरदास, बारहह, रामानन्द, रज्जब, " बैजू, 'लखनदास, नाभादास आदि ने भी चौबीस अवतार का वर्णन किया है।
इन चौबीस अवतारों में मत्स्य, वराह, कूर्म, आदि अवतार पशु हैं। हंस पक्षी है। कुछ अवतार पशु और मानव दोनों के मिश्रित हैं जैसे नृसिंह, हयग्रीव आदि।
वैदिक परम्परा मे अवतारों की संख्या में क्रमशः परिवर्तन होता रहा है। जैन तीर्थंकरों की तरह उनका व्यवस्थित रूप नही मिलता। इतिहासकारों ने 'भागवत' की प्रचलित चौबीस अवतारो की परम्परा को जैनों से प्रभावित माना है। श्री गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का मन्तव्य है, कि चौबीस अवतारों की यह कल्पना भी बौद्धों के चौबीस बुद्ध और जैनों के चौबीस तीर्थंकरों के आधार पर हुई है।"
गुरु जी ये बताइए कि नॉन वेज खाना सही है की गलत है।
*चौबीस बुद्ध*
भागवत में जिस प्रकार विष्णु, वासुदेव या नारायण अनेक अवतारों की चर्चा की गई है, उसी प्रकार लंकावतार सूत्र मे कहा गया है कि बुद्ध अनन्त
रूपों में अवतीर्ण होंगे, और सर्वत्र अज्ञानियों में धर्म देशना करेंगे। लंकावतार में भागवत के समान चौबीस बुद्धों का उल्लेख मिलता है।
सूत्रालंकार में बुद्धत्व प्राप्ति के लिए प्रयत्न का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि कोई भी पुरुष प्रारम्भ से ही बुद्ध नहीं होता। बुद्धत्व को उपलब्धि के लिए पुण्य और ज्ञान-संभार की आवश्यकता होती है। तथापि बुद्धों की संख्या में अभिवृद्धि होती गई। प्रारम्भ में यह मान्यता रही कि एक साथ दो बुद्ध नहीं हो सकते, किन्तु महायान मत ने एक समय में अनेक बुद्धों का अस्तित्व स्वीकार किया है। उनका मन्तव्य है कि एक लोक में अनेक बुद्ध एक साथ नहीं हो सकते ।"
इससे बुद्धों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई। संदर्भ पुंडरीक में अनन्त बोधिसत्व बताए गए हैं ,और उनकी तुलना गंगा के रेती के कणों से की गई है। इन सभी बोधिसत्वों को लोकेन्द्र माना है। उसके पश्चात् यह उपमा बुद्धों के लिए रूढ़ सी हो गई।
लंकावतार सूत्र में यह भी कहा गया है कि बुद्ध किसी भी रूप को धारण कर सकते हैं, कितने ही सूत्रों में यह भी बताया गया है कि गंगा की रेती के समान असंख्य बुद्ध भूत, वर्तमान और भविष्य में तथागत रूप होते हैं।" जैसे विष्णुपुराण और भागवत में विष्णु के असंख्य अवतार माने गए हैं वैसे ही बुद्ध भी असंख्य अवतरित होते हैं। जहाँ भी लोग अज्ञान अंधकार में छटपटाते हैं ,वहाँ पर बुद्ध का धर्मोपदेश सुनने को मिलता है।
बौद्ध साहित्य में प्रारंभ में पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए बुद्ध के असंख्य अवतारों की कल्पना की गई, किन्तु बाद में चलकर बुद्ध के अवतारों की संख्या ५, ७, २४ और ३६ तक सीमित हो गई।
जातक-कथाओं का। दूरेनिदान, अविदूरेनिदान, और सन्तिकेनिदान के नाम से जो विभाजन किया गया है उनमें से दूरेनिदान मे एक कथा इस प्रकार प्राप्त होती है :-
"प्राचीनकाल में एक सुमेध नामक परिव्राजक थे। उन्हीं के समय दीपंकर बुद्ध उत्पन्न हुए। लोग दीपंकर बुद्ध के स्वागत हेतु मार्ग सजा रहे थे। सुमेध परिव्राजक उस कीचड़ में मृगचर्म बिछाकर लेट गया। उस मार्ग से जाते समय सुमेध की श्रद्धा व भक्ति को देखकर बुद्ध ने भविष्यवाणी की - "यह कालान्तर में बुद्ध होगा।" उसके पश्चात् सुमेध ने अनेक जन्मों में सभी पारमिताओं की साधना पूर्ण की। उन्होंने विभिन्न कल्पों में चौबीस बुद्धों की सेवा की और अन्त में लुम्बिनी में सिद्धार्थ नाम से उत्पन्न हुए।"
प्रस्तुत कथा में पुनर्जन्म की सिद्धि के साथ ही विभिन्न कल्पों में चौबीस बुद्ध हुए यह बताया गया है।
भदन्त शान्तिभिक्षु का मन्तव्य है कि ईसा पूर्व प्रथम या द्वितीय शताब्दी मे चौबीस बुद्धों का उल्लेख हो चुका था।
Chobis budh nahi 28 budh hue hae chacha kya keh rahe ho app ko khud ko nahi malum su i sunai batto ko sunker ajjate ho 28 budh hue he jinme se antim budh Gautam budh the
Bhgvan ne snsar ban ya to sb jatiki rchna aksat kri kya ya dhiredhire
*तीर्थंकर अवतार नहीं*
एक बात स्मरण रखनी चाहिए कि जैन धर्म ने तीर्थंकर को ईश्वर का अवतार या अंश नही माना है, और न देवी सृष्टि का अजीव प्राणी ही स्वीकार किया है। उसका यह स्पष्ट मन्तव्य है कि तीर्थंकर का जीव अतीत में एक दिन हमारी ही तरह वासना के दल-दल मे फंसा हुआ था। पाप रूपी पंक से लिप्त था। कषाय की कालिमा से कलुषित था, मोह की मदिरा से मत्त था। आधि व्याधि और उपाधियों से त्रस्त था। हेय, ज्ञेय और उपादेय का उसे तनिक भी ध्यान नही था। वैराग्य से विमुख रहकर वह विकारों को अपनाता था। उपासना को छोड़कर वासना का दास बना हुआ था। त्याग के बदले वह राग में फंसा हुआ था। भौतिक व इन्द्रियजन्य सुखों को सच्चा सुख समझकर पागल की तरह उसके पीछे दौड़ रहा था, किन्तु एक दिन महान् पुरुषों के संग से उसके नेत्र खुल गये। भेद-विज्ञान की उपलब्धि होने से तत्त्व की अभिरुचि जागृत हुई सही व सत्य स्थिति का उसे परिज्ञान हुआ।
किन्तु कितनी ही बार ऐसा भी होता है कि मिथ्यात्व के पुनः आक्रमण से उसके ज्ञान नेत्र धुंधले हो जाते हैं, और वह पुनः मार्ग को विस्मृत कर कुमार्ग पर आरूढ़ हो जाता है, और लम्बे समय के पश्चात् पुनः सन्मार्ग पर आता है, तब वासना से मुँह मोड़कर साधना को अपनाता है, उत्कृष्ट तप व संयम की आराधना करता हुआ एक दिन भावो की परम निर्मल अवस्था से तीर्थंकर नाम कर्म का बंधन करता है और फिर वह तृतीय भव से तीर्थंकर बनता है किन्तु यह भी नही भूलना चाहिए, कि जब तक तीर्थंकर का जीव संसार के भोग-विलास में उलझा हुआ है, सोने के सिहासन के मोह में फंसा हुआ है, तब तक वह वस्तुतः तीर्थंकर नहीं है। तीर्थंकर बनने के लिए उस अन्तिम भव मे भी राज्य-वैभव को छोड़ना होता है। श्रमण बन कर स्वयं को पहले महाव्रतो का पालन करना होता है, एकान्त शान्त निर्जन स्थानों में रहकर आत्म-मनन करना होता है, भयंकर से भयंकर उपसर्गों को शान्त भाव से सहन करना होता है। जब साधना से ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्म नष्ट होते हैं, तब केवलज्ञान केवलदर्शन की प्राप्ति होती है। उस समय वे साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप तीर्थ की स्थापना करते हैं तब वस्तुतः तीर्थंकर कहलाते हैं।
*अवतार-वाद और उत्तार-वाद*
वैदिक परम्परा का विश्वास अवतार-वाद में है। गीता के अभिमत अनुसार ईश्वर, अजर-अमर, अनन्त और परात्पर होने पर भी अपनी अनन्तता को अपनी माया शक्ति से संकुचित कर शरीर को धारण करता है। अवतार-वाद का सीधा सा अर्थ है, ईश्वर का मानव के रूप में अवतरित होना, मानव शरीर से जन्म लेना। गीता की दृष्टि से ईश्वर तो मानव बन सकता है किन्तु मानव कभी ईश्वर नहीं बन सकता। ईश्वर के अवतार लेने का एक मात्र उद्देश्य है, सृष्टि में चारों ओर जो अधर्म का अंधकार छाया हुआ होता है उसे नष्ट कर धर्म का प्रकाश, साधुओं का परित्राण, दुष्टों का नाश और धर्म की स्थापना करना ।
जैन धर्म का विश्वास अवतार-वाद में नहीं उत्तार-वाद में है। अवतार-वाद में ईश्वर को स्वयं मानव बनकर पुण्य-पाप करने पड़ते हैं। भक्तों की रक्षा के लिए उसे संहार भी करना पड़ता है। स्वयं राग-द्वेष से मुक्त होने पर भी भक्तों के लिए उसे राग भी करना पड़ता है और द्वेष भी। वैदिक परम्परा मे विचारकों ने इस विकृति को लीला कहकर उस पर आवरण डालने का प्रयास किया है। जैन दृष्टि से मानव का उत्तार होता है। वह प्रथम विकृति से संस्कृति की ओर बढ़ता है, फिर प्रकृति में पहुँच जाता है। राग-द्वेष युक्त जो मिथ्यात्व की अवस्था है वह विकृति है। राग-द्वेष मुक्त जो वीतराग अवस्था है वह संस्कृति है। पूर्ण रूप से कर्मों से मुक्त जो शुद्ध सिद्ध अवस्था है वह प्रकृति है। सिद्ध बनने का तात्पर्य है कि अनन्त काल के लिए अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्त शक्ति में लीन हो जाना। वहाँ कर्म-बंध और कर्म-बंध के कारणों का सर्वथा अभाव होने से जीव पुनः संसार में नहीं आता। उत्तार-वाद का अर्थ है मानव का विकारी जीवन से ऊपर उठकर भगवान के अधिकारी जीवन तक पहुँच जाना, पुनः उसमे कदापि लिप्त न होना। तात्पर्य यह है कि जैन धर्म का तीर्थंकर ईश्वरीय अवतार नही है। जो लोग तीर्थंकरों को अवतार मानते हैं वे भ्रम में हैं। जैन धर्म का यह वज्र आघोष है, कि प्रत्येक व्यक्ति साधना के द्वारा आन्तरिक शक्तियों का विकास कर तीर्थंकर बन सकता है। तीर्थंकर बनने के लिए जीवन में आन्तरिक शक्तियों का विकास परमावश्यक है।
संकलित..✍️
Gautam budh or bhagwan budh dono alag alag hae bhagwan budh ka janm bodh gaya me hua tha
तो तुमने वीडियो देख ली है ओके then why u asking me every thing
@@d.slifestyle3737 app ne refrence diya tha wo chek ker raha tha kitna sahi hae
@@d.slifestyle3737appne refrence jo diya tha wo galat tha per sahi refrence abhi bhi nahi diya app ne
Log Satya ko sawikar karne ko tayaar nahin hain....
असुर या राक्षस किन्हें कहा गया है?
Karma ka aadhar par danda meltaha ha. Lakme waktka entajar karna padta ha . . Ya pàrmatmaka neam ha.. Mera anubhab ha.. om
अवतारवाद के सिद्धांत ने एक और तो ईश्वर के सर्वशक्तिमान,अगोचर और निराकार स्वरूप का खण्डन किया,तथा इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया कि यदि ईश्वर एक गर्भ से जन्म लेकर सीमित और स्थान पर आ गए तब शेष श्रष्टि स्वयं कैसे चलती रही?
दूसरा यह कि एक ही काल में दो दो अवतार राम और परशुराम हुए और आश्चर्य यह की दोनो धनुष यज्ञ में एक दूसरे से उलझ गए और नहीं पहचान पाए, यह अज्ञान ईश्वर में क्यों आया?
यह भी कि भगवान कृष्ण ने जब अर्जुन से कहा कि जब जब धर्म की हानि होती है तो में जन्म लेता हूं,
यदि धर्म की हानि ही अवतार का कारण है, तो आज धर्म के पतन पर भगवान क्यों नहीं आए?
यह भी यदि अवतार ही उद्धारक हैं तब श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को स्वयं लड़ने को क्यों कहा?
क्या अवतारवाद के कारण हम अकर्मण्य और कायर नहीं हुए?
आज भी दुनिया से पिटते और सिमटते हुए हम विनष्ट होने के कगार पर है कोई अवतार नहीं आ रहा है।
अरे भाई! यदि भगवान कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर चक्र उठा सकते हैं इससे भी समझ नही आया कि रक्षा कैसे की जाती है।
क्या शिवाजी,महाराणा प्रताप, लक्ष्मीबाई,भगत सिंह अवतार से कम थे? इन्हे भी अवतार मानो।
सच्चाई यह है अपने महान कार्यों से राम,कृष्ण,बुद्ध,महावीर महान हुए और अपने पराक्रम, बल,बुद्धि और न्याय से संसार का पालन करने के कारण इन्हें भगवान विशेषण दिया गया।
Sarvpratham to app ishwer or bhagwan ke bich me anter Jann ke shre krishn ram siv bramha or Vishnu ko bhagwan kaha jata hae na ki ishwer jese devta or ishwer me anter hae usi prakar ishwer or bhagwan me anter hae
Or kis avtar ke karan se dharm ki Hani hui hae 😊
जैन धर्म में अवतार की कोई अवधारणा नहीं है । प्रत्येक तीर्थंकर के माता-पिता, जन्म स्थान आदि का जैन शास्त्रों में विधिवत उल्लेख है । भगवान ऋषभदेव के माता-पिता नाभिराय और माता मरुदेवी का स्पष्ट उल्लेख है । यही श्रीमद्भागवत में वर्णित है ।
श्रीराम और श्रीकृष्ण के जैसा आज तक कोई पैदा लिया क्या।
Srikrishnapaidahinahihuaihain
Kuch varshi ke baad log kahege ki Basantlalpedahinahihue
Acharya ji ishwar aap ko salamat rakhe aur sahi ilam ata kare mujhe aapki video dekhna pasand hai aap Satya ki jo me lage ho achhi baat hai lekin jankari poori na hone ki wajah se aap kabhi kabhi bhatak jate Hain aapka purpose only kisi 1 jaati vishesh ko bhatakane se bachaane ka nahi hona chahiye balki all worlds ko bhatakane se bachaane ka purpose hona chahiye hame aap se aisi aasha hai
Aap ne es video me 1 ek galti ki hai ki Hazarat Mohammad sahab ne apne aap ko ishwar kaha hai jo galat hai
Islam dharm ke doosre kalma me saaf saaf hai ki ishwar ke Shiva koi ibaadat ke laayak nahi hai
Hazrat Muhammad ishwar ke Nek Bande aur aakhiri Rasool hain
Meri baat ka galat na samjhe
I am best your friend
Pradhan mantri wala tark diya appne
Pradhan mantri ko ko avshykta nahi he ki wo jaker ke pradhan banne tab jaker ke kam hoga wo adesh dega or pradhan ko kam kerna hoga
To fir ishwer bhi adesh dege kyoki esa to nahi ho sakta ki ravan ko ak hi shan me mar diya nahi ho sakta uske leye ishwer ne bhi adesh diya hoga or use wo kary kerna hoga ishwer kis adesh ka palan kerna hhoga kyo ki wo sarvshakti man hae
Or ishwer ko waha anne ki avshyakta hi nahi hae or na hu. Shre ram ki ishwer keh rahe hae app bhagwan or ishwer ko ak samjh eahe hae isme app ki galti hae
Srujan ko aj manake pravachan de rahe ho
अगर अवतार वाद एक कहानी है
तो तुम लोग जो सुना रहे हो वो भी कहानी है जो तुम्हारे झूठ प्रकाश में लिखीं हुई है पढ़ा है मैने उसमे शिवाय दूसरो की बुराई के कुछ भी नही है
नमस्कार आपने बहुत अच्छे ज्ञान दिया है लेकिन आपका ज्ञान मुझे पूर्ण नहीं लगता है। भगवान, ईश्वर ,ब्रह्म ,परमेश्वर इन सभी की परिभाषा आप नहीं कर पा रहे हैं। इन सभी में आप बहुत कन्फ्यूज्ड दिखाई दे रहे हैं। आशा है आप आचार्य प्रशांत जी को सुनेंगे इन विषयों पर तो शायद आपके कांसेप्ट क्लियर होंगे ।कृपया कर स्वाध्याय जरूर कीजिए आचार्य जी के विषय पर बहुत स्पष्ट ज्ञानवर्धक वीडियो उपलब्ध है यूट्यूब पर। आप भी कन्फ्यूज्ड है और आप अपने सुनने वालों को भी कन्फ्यूज्ड कर रहे हैं। जब ज्ञान पूर्ण ना हो तो नुकसान दायक है सभी के लिए ।आपके लिए भी और सुनने वालों के लिए भी।
Mubarak ho aapko bhi chuna laga Diya gya h😂
* Pranamji..Namaskar...
* Dev...Bhagvan & parmatma = God .. creator God & The Supreme Truth God ..*
* God= G= GENERATOR.
O= OPERATOR & D=.. DESTROYER .
= BRAHMA VISHNU & MAHESH = MAIKAEL. AJAJIL AND ISRAEL =
*PEDA Karnevala..Poshan
& sanhar Karnevala .....
* *CREATER GOD = Avinashi AKSHAR Bhagvan = KUDRAT = NOORJALAL = SADARTULMUNTAHA =
Parmatma ka SAT SWARUP =
***Sachidanand***.
**SAT= SATTA-POWER ..
** CHID= KHUD PARMATMA GHAN SWARUP ( NIRVIKAR )
ANAND =CONSORTIUM/
Ahuladini shakti = Swamini= Syama maharani= Shubhan ..
* Kshar .Akshar &
Akshratit....
* LAA. ILLAH & ALLAH..
* GOD .CREATER GOD &
THE SUPREME TRUTH GOD..
* CHIDADITYAM KISHORANGAM PAREDHAMNI BIRAJITAM SWARUPAM SACCHIDANANDAM NIRVIKARAM SANATANAM..
* GEETAJI 15 ADDHYAY.
* DWAVIMO PURUSHO LOKE KSHAR CHA AKSHAR EVACH KSHAR SARVANI BHUTANI KUTATCHO AKSHAR UCHYATE..16/17 SLOK.
*UTTAM PURUSH: CHA ANYA PARMATMA ITI UDAHRYATE...( THE SUPREME TRUTH GOD is above them...
* Sachidanand parmatma
SWARUP vala he...
Nirvikar he..changeless..
Shining Body..Darshniy.
Shaxirup he..Han vo..
SATTA Ke Rupme Nirakar he..jese .GAZETTE CIRCULATE HOTA HE..
SABKO LAGU HOTA HE.
* PARMATMA KAN-KAN ME NAHI HOTA HE..vo SATTA- Power ke Rupme
Har jagah he..Baki
KARTA uski KRUTI me nahi rehta..bahar rehta he.
...for More information &
Clear cut Details ref books
* Shri Kuljam swarup Saheb & Shri Vitak saheb
The History of Nijanand Sampraday =shri Krishna Pranami Dharm..pranamji
@@piyushkumargupta8518 chuna kisne kisko lagay hae wo saff saff dikh raha hae
Yahi baat me bhi keh raha hu ki ye bahut confuse hae in mamlo me
हमारे हिन्दू धर्म में बहुत भरम फेलैया गया है कैसे सुधार होगा
Puran ki kahaniya muje babut osand hai
Bahut manoranjan hai😂😂
Pr gyan sirf ved me hai
Same here 😂
आप इतना बताये सात रुषी भगवान शिव के पास क्यु जाते हैं
Swapn sapna kyo ata hai
Jayse film chhote cheap me samajati hay vaise bhagawam srujanpate hay
भगवान भक्त के ईच्छा के पूर्ति हेतु जन्म लिए मनु शतरूपा ने वर मांगा आप पुत्र के रुप में हमारे यहा आये और भी कारण है ऐसा रामचरितमानस में है दुसरी बात धर्म यानि कर्तव्य का निबाह कैसे करे या उत्तम पुरुष के व्यवहार कैसे होने चाहिए इसका प्रटिकल कर्म का डेमो दिखाने के लिए ईश्वर अवतार ले सकते हैं, उनकी गाथाए मनुष्य को सुख देती है भक्ति देती है इसलिए अवतार लेना आवश्यक है, वे निराकार है पर साधारण जन को इस रुप का ज्ञान और साक्षात्कार करना कठिन है, सत्य और प्रेम ही उनकी प्रकृति है श्रधा पूर्वक सत्य का आचरण करने से मनुष्य उनका अनुभव कर सकते हैं ऐसा मेरा सोचना है । प्रणाम 🙏
😅😂😂
@@anandpandey9143 han hasi ke piche bahut dukh chipa hua hae
@user-dq1jy3it4e han bhai tumhare leye kuch bhi jao jaker ke science journey RUclips channel per ary samaj ke leye kesa jeher ghol raha hae ise roko
@user-dq1jy3it4e tumhare leye to sab kuch kuch bhi hae
Kya bhagvan bharatme or Brahman or rajputoke gar avtar lete hai
धीरेंद्र कुमार शास्त्री अंधविश्वास फैला रहे हैं या फिर सही में चमत्कार हैं। कृपया बताइएगा।आप बहुत ही अच्छे समझाते हैं।
धीरेंद्र कुमार शास्त्री महा ठग है,कुछ दिनों बाद आशा राम वाला काम होने वाला है।इंतजार कीजिए।
वेदों और सत्यार्थ प्रकाश के अनुसार तो अंधविश्वास है ,, पर आजकल के समय में तो सही है मूर्ख हिंदुओ को मुस्लिम होने से बचा रहा है
अंतिम चरण में तो आप भी लाभ की बात करते हैं पैसा की बात करते हैं ज्ञान बांटने के लिए पैसे की क्या आवश्यकता है
Bhagwat likhne wala apni maa ke garbh me mr gya hota kaash 😢
धन्यवाद आपने बहुत कुछ जो हम जानते हुए भी भूल बैठे थे मुझको याद दिला दिया महर्षि देव दयानंद की जय
क्यों अपने आदरणीय गुरुजी का अपमान करवा रहे हैं आप
Hinduon jyada confused na karo apna gyan apne pass rakho
दयानंद सरस्वती का ज्ञान अधूरा है आपके ज्ञान से लगता है,अगर दयानंद सरस्वती ने शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया होता, हिन्दू ओ जब-तक दयानंद सरस्वती वाले शंकराचार्य से शास्त्रार्थ आज के वक्त करने के बाद उनकी बातों को मानना,ऐ लोग अपने रोज़ी रोटी के लिए हिन्दू ओ को मूर्ख बना रहे हैं दयानंद सरस्वती को अपने पुस्तक का नाम जूठारथ प्रकाश रखना चाहिए,ईस आदमी ने भी सनातन के धर्म का पैसा लिया है, इसलिए ईस अधर्मी की बातें में आना मत,ईस लफंगे आदमी पर ऐफ आईं आर दर्ज किया जाए ओर रिमांड पर भेज दिया जाये
Sty bchn
अवतार नहीं होते '
KYA FALTOO TIME PASS KARTE ARYA NAMAAZI
App bhagwan or ishwer me anter hi nahi malum hae or app baat avtaro ki ker rahe hae bhagwan vishnu ager ishwer hote to unhe ishwer Hari kehte na ki bhagwan Hari
Are mere bhi bhagvan alga to bhi unke avatar thodi na hote he common Sense ki bat he
@@d.slifestyle3737 kyo nahi ho sakte bhagwan ke avtar
Gita me bhagwan swayam kehte hae ki jab jab prithvi per paap or atyachar bhadta hae tab me avtar leta hu uske ant ke leye abb bhagwat gita ko bhi app jutha mante he to fir wo app ki marzi
Gita ka gyan shre krishn dwara diya gaya wo koi amm admi to nahi de sakta tha Krishna bhagwan avtar the app unhe mahapurush mano hum unhe bhagwan ka avtar mante hae ye apni apni soch hae
@@KIM_JONG_UN_MOTA_BHAI1008 ek or video me Iske bare mein details se likha hua hai aur bataya bhi hai main abhi Jara batata Hun Uska Isi Ka yah Prahari ka pahle pure padho per jakar baat karna bhai
Bhi sach gadbad he tumare sath koya bat nahi ye sab agyanta ka karn he simple Sa Funda hai use video ko pura Dekho aur video ka title hai ki kya Shri Krishna Bhagwan ka avtar Hai by prahari
@@d.slifestyle3737 inki yahi video dekhker me samajh gaya ki guruji kitne bade vidvan hae ye khud bahut se topics ko leker ke confused hae shre krishna ka jikr bhi purano ke hi through milega or jin purano ke through unaka gyan unke bare me jankari mil rahi hae use app log nakkar dete ho or baad me shre krishn or shree ram ko mahapurush ghosit ker dete ho wah kya baat hae sahi hae
Ravan ki tulna adhunik samy se ki ja rahi hae kaha ja raha he ki parmanu bum fek dete to kya ravan bhi shant rehta lanka ke pass appne astr shashtr nahi hote tark ke nam per bakwas kiye ja rahe ho app
Bhi please use ur common sense and watch full video then talkkkkkk
@@d.slifestyle3737 Bhai unhone kaha ki parmanu bum fekh dege jis prakar se ravan ka vyaktitva tha kya uske pass parmanu bam nahi hoga wo khud common sense wali batt nahi ker rahe hae
@@KIM_JONG_UN_MOTA_BHAI1008 Hindi mein type kar do Tumhara comment samajh Nahin a Raha
@@d.slifestyle3737thodi typing mistake ho jati hae sahi ker liya hae mene
कृष्ण भगवान थे तभी विराट रूप दिखाया अर्जुन को समझे
दयानंद सरस्वती आधा सच्चा ओर आधा झूठा स्वामी लगता है,अगर ईस पाखंडी की बात सच्ची होती तो कीसी शंकराचार्य के साथ चर्चा का विडियो जरूर होता अगर चर्चा होती तो सत्यार्थ प्रकाश झूठा साबित होता
Chutia hai nhi pta
आपका नंबर भेज ना
🙏🏻
Om
Om