आलोपी देवी मंदिर प्रयागराज - एक अनोखा शक्तिपीठ जहाँ बिना मूर्ति के होती है पूजा | 4K | दर्शन 🙏

Поделиться
HTML-код
  • Опубликовано: 6 окт 2024
  • श्रेय:
    संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
    लेखक - रमन द्विवेदी
    भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और हार्दिक अभिनन्दन! भक्तों अनादि काल से भारत में शक्ति उपासना की परंपरा रही है इसीलिए शक्ति उपासना के अनेक मंदिर, उपासना केंद्र और अर्चना स्थल स्थापित हैं। इन उपासना स्थलों में शक्ति के इक्यावन महाशक्तिपीठों का अपना विशेष महत्व है। जहाँ देवी के अनेक भव्य, दिव्य और रहस्मयी विग्रहों और मूर्तियों का दर्शन होता है। कितु आज हम आपको अपने कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से जिस देवी शक्तिपीठ मंदिर की यात्रा करवाने जा रहे हैं उस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। मान्यता है कि देवी यहाँ अन्तर्धान होकर अपने भक्तों का कल्याण कर रही हैं। भक्तों हम बात कर रहे हैं संगमनगरी प्रयागराज स्थित माँ अलोपी देवी मंदिर।
    मंदिर के बारे में:
    भक्तों प्रयागराज का अलोप शंकरी देवी अर्थात अलोपी देवी मंदिर, प्रयागराज अलोपी बाग़ में स्थित है। यह शहर का एक भीड़ भरा क्षेत्र है। अलोपी देवी मंदिर में किसी भी देवी और देवता की मूर्ति नहीं है, बल्कि एक लकड़ी की ‘डोली’ (पालकी या पालना) है जिसकी पूजा की जाती है। यों तो इस मंदिर में प्रतिदिन भक्तों ताता लगा रहता है लेकिन नवरात्रियों के दौरान तो यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
    शक्तिपीठों की पौराणिक कथा:
    भक्तों पौराणिक कथाओं के अनुसार- दक्ष यज्ञ में भगवान शिव की निन्दा सुनकर जब सती ने अपना प्राण त्याग दिया तब उनके मृत शरीर को लेकर देवाधिदेव व्रुâद्ध हो तांडव नृत्य करने लगे। ऐसी स्थिति में भगवान शिव को शान्त करने की दृष्टि से श्री नारायण ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काअ दिया। सती के कटे हुए अंश इक्यावन स्थानों पर गिरे। ये इक्यावन स्थान शक्ति के इक्यावन महापीठों के रूप में प्रतिष्ठित हुए। तीर्थराज प्रयाग में जिस स्थान पर माता सती के दाहिने हाथ का पंजा गिरकर अदृश्य यानी अलोप हो गया था। माता सती के शरीर अंग अदृश्य अर्थात अलोप हो जाने की वजह से ही यहां कोई मूर्ति नहीं है। यहाँ देवी की कोई मूर्ति नहीं होने के कारण इस सिद्धपीठ का नाम अलोप शंकरी पड़ा। जो भक्तों में अलोपी मंदिर के नाम से मशहूर है।
    अलोपी देवी मंदिर से जुडी लोककथा:
    भक्तों प्रयागराज के अलोपी मंदिर से जुड़ी एक प्रचलित लोककथा के अनुसार - एक बार डकैतों के एक झुंड ने यहाँ से गुजर रही एक बारात पर हमला कर दिया था। डाकुओं ने बड़ा रक्तपात मचाते हुए न केवल सभी बारातियों को लूट लिया बल्कि कइयों को मौत के घाट भी उतार दिया। बारातियों को लूटने और मारने के बाद डाकू दुल्हन की ‘डोली की तरफ बढे तो देखा की दुल्हन उस डोली से गायब थी। जिसके बाद वहां गायब हुई दुल्हन को देवी स्वरूप माना जाने लगा। कालांतर श्रद्धालुओं द्वारा उसी स्थान पर एक मंदिर की स्थापना कर दी गयी। जो अब अलोपी देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
    मंदिर का इतिहास:
    भक्तों अलोपी देवी मंदिर का इतिहास स्पष्ट नहीं है और न ही कोई ऐसा प्रमाण है जिससे इस मंदिर के निर्माण सम्बन्धी जानकारी प्राप्त हो सके। कहा जाता है कि ये मंदिर पंद्रहवी सोलहवीं में स्थानीय श्रद्धालुओं द्वारा बनवाया गया था। कालांतर विक्रम संवत 1715 में महान मराठा योद्धा श्रीनाथ महादजी शिंदे ने प्रयागराज की यात्रा की और संगम स्थल का विकास किया था। संभवतः इसी दौरान उन्होंने अलोपी देवी मंदिर का विकास और नवीनीकरण भी किया गया हो।
    मंदिर का गर्भगृह में:
    भक्तों अलोपी माता मंदिर के गर्भगृह में एक चबूतरा है चबूतरे के मध्य एक कुंड है। कि ये कुंड माता सती के दाहिने हाथ का पंजा गिर कर लुप्त होने से बना था। कुंड के ऊपर लकड़ी का एक चौकोर पालना (डोली या पालकी) है जो रस्सी से लटकता हुआ एक लाल चुनरी से ढंका रहता है। कुंड के बारे में लोगों का विश्वास का है कि मां सती की दायें हाथ का पंजा इसी स्थान पर गिरा था जहां पर कुंड बना है। इसलिए यहां पर आने वाले श्रद्धालु इस कुंड के पवित्र जल का आचमन भी करते हैं। कहा जाता है कि कुंड का पानी में देवी कई चमत्कारिक शक्तियां समाहित हैं।
    भक्तों की होती है मनोकामना पूर्ण:
    भक्तों नवरात्रि के पावन पर्व पर पूरे नौ दिन दूर-दूर से भक्तगण अलोपी देवी मंदिर में दर्शन पूजन के लिए आते हैं। कहा जाता है कि अलोपी माता मंदिर में पालने की पूजा करने और कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने वाले हर देवी भक्त की मनोकामना अवश्य पूरी होती है। जब तक हाथ की कलाई में माँ के नाम कलावा बंधा रहता है तब तक देवी अलोपी मां अपने भक्त की रक्षा करती हैं। इसीलिए दूर- दराज से आये भक्त सबसे पहले संगम स्नान करते हैं, उसके बाद अलोपी मां के दरबार में आकर नतमस्तक होकर मन्नत मांगते है।
    मन्नत की चुनरी:
    भक्तों प्रयागराज के अलोप शंकरी माता मंदिर यानि अलोपी देवी मंदिर परिसर में एक पेड़ है, जिसपर लोगों का विश्वास है कि यहाँ जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से चुनरी बांधता है माँ अलोपी की कृपा से उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
    आसपास के पर्यटन स्थल:
    भक्तों अगर आप अलोपी देवी मंदिर जाने का प्लान बना रहे है और दर्शन पूजन के अलावा पर्यटन में भी रुचि रखते हैं त्रिवेणी संगम, खुसरो बाग, आनंद भवन, शोक स्तंभ, प्रयागराज किला, बड़े हनुमान मंदिर, माघ मेला, ऑल सेंट कैथेड्रल, न्यू यमुना ब्रिज, अल्फ्रेड पार्क, मनकामेश्वर मंदिर, फन गाँव वाटर पार्क, नंदन कानन वाटर रिट्रीट जैसे लोकप्रिय दर्शनीय स्थल है.
    भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव, तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन ! 🙏
    Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
    #devotional #hinduism #temple
  • КиноКино

Комментарии • 11