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संविधान प्रेमी हरियाणा चुनाव में किस पार्टी को वोट करें ? हरियाणाचुनाव2024
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Комментарии

  • @SkHimachali7
    @SkHimachali7 26 минут назад

    श्रीमान जी आपने सविंधान के बारे में बहुत ही सरल भाषा में समझाया ,हरेक देशवासी को जागरुक किया है! !हार्दिक - अभिनंदन | जय भारत जय भीम जय सविंधान

  • @RupeshKumar-hl2qb
    @RupeshKumar-hl2qb 30 минут назад

    Jay sambidhan sir ji

  • @mayuriurkude749
    @mayuriurkude749 37 минут назад

    बहुत ही महत्व पूर्ण जाणकारी 🙏

  • @Himanshuyadav-hr9gz
    @Himanshuyadav-hr9gz 52 минуты назад

    किलों में बैठे रहकर कोई अकबर नहीं बनता। नेता वही जो जनता के बीच खो जाए। सलाम है मल्लिकार्जुन खड़गे जी को जो कम से कम जनता के बीच जाकर सबसे युवा नेता के तौर पर नज़र आते हैं। बयानों से संविधान नहीं बचाये जाते। बयानों से केवल जानवरों को ही हाँका जा सकता है।

  • @saurbhnageshwer3766
    @saurbhnageshwer3766 Час назад

    त्रिपाठी जी आपको कोटि कोटी नमन आप जैसे महामानव की आज समाज मे जरूरत है।।।धन्यवाद जयभीम जयभारत

  • @DurgaParsad-r1k
    @DurgaParsad-r1k Час назад

    जय संविधान सर जी

  • @rajkumarahirwar3722
    @rajkumarahirwar3722 2 часа назад

    जय भीम जय

  • @AbhiRaj-yc9ey
    @AbhiRaj-yc9ey 2 часа назад

    Chhua chhut s jo ladai chal rahi h uske bare m to nhi bola Q ki tum pandit ho n

    • @thelogicalindian99
      @thelogicalindian99 40 минут назад

      दिमाग में जो नफ़रत है उसे हटावो और इंसान बनो।

  • @kevalpariharhathlatiger
    @kevalpariharhathlatiger 2 часа назад

    जहाँ चन्द्रशेखर मजबूत हैं वहाँ उनको वोट और जहाँ मायावती मजबूत हैं वहाँ उनको वोट करे ❤

    • @Himanshuyadav-hr9gz
      @Himanshuyadav-hr9gz 48 минут назад

      बस यही तो भाजपा भी चाह रही है भाई

  • @kevalpariharhathlatiger
    @kevalpariharhathlatiger 2 часа назад

    चंद्रशेखर आजाद को वोट करके संविधान बचाने का काम करे ❤

  • @rajjansir
    @rajjansir 2 часа назад

    Thank you sir crpc bnss ke liye video banaye

  • @sagarkawachi1409
    @sagarkawachi1409 2 часа назад

    ❤❤❤❤❤EVM हटाओ देश बचाओ ❤ मोदी हटाओ देश बचाओ ❤❤❤ जय संविधान ❤❤

  • @NiramlNiramlKumar
    @NiramlNiramlKumar 2 часа назад

    JAI BHIM AAP. BIDO. BANAY

  • @sagarkawachi1409
    @sagarkawachi1409 2 часа назад

    ❤❤❤❤ जय भीम जय संविधान ❤❤ sir जी बहुत दिन बाद वीडियो बनाए हैं ❤ जय संविधान ❤❤❤

  • @RatanLal-ix6yn
    @RatanLal-ix6yn 2 часа назад

    गठबंधन को ओट। देना चाहिए

  • @dr.sangitapal395
    @dr.sangitapal395 3 часа назад

    हार्दिक अभिनन्दन दादा

  • @dr.sangitapal395
    @dr.sangitapal395 3 часа назад

    सादर प्रणाम दादा

  • @mahendraanand3791
    @mahendraanand3791 3 часа назад

    परम्परागत पार्टी के उपलब्धि का वारिस बनकर राहुल फायदा ले रहे है।AAP नयाँ ओर जनता के आधारभूत आवश्यकता ( शिक्षा,स्वास्थ्य,बिजली,पिने का पानी) के पुर्ती करते हुए संविधान का रक्षा करते आ रहा है।

    • @Himanshuyadav-hr9gz
      @Himanshuyadav-hr9gz 45 минут назад

      फ़िलहाल हरियाणा का समीकरण ऐसा है महोदय, कि AAP को वोट देना, मतलब बीजेपी की गाड़ी में हवा भरना। बाकी केजरीवाल जी एक मंझे हुए दूरदर्शी नेता हैं।

  • @dayashankar7696
    @dayashankar7696 3 часа назад

    Good morning sir

  • @manojkumarkumar7285
    @manojkumarkumar7285 4 часа назад

    पंकज सर जी अभी सभी भारतीयों का ध्यान इजरायल की लड़ाई पर है

  • @peetamkalyan2620
    @peetamkalyan2620 5 часов назад

    Good morning sir

  • @jairamverma8960
    @jairamverma8960 5 часов назад

    जय हो संविधान आचार्य जी संविधान के सच्चे योद्धा को सदर नमन

  • @RakeshPaswan-m2k
    @RakeshPaswan-m2k 9 часов назад

    Jay samidhan Jay Bharat

  • @RakeshPaswan-m2k
    @RakeshPaswan-m2k 9 часов назад

    Sir ham App ka pura video dekha suna too dil bada kush huya ❤

  • @RakeshPaswan-m2k
    @RakeshPaswan-m2k 10 часов назад

    ❤❤❤❤❤

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 10 часов назад

    विश्वमित्रो! खुद को शूद्रण मानकर बताकर जीने की जरूरत ही क्या है? हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण है, बांह समान क्षत्रिय हरएक मानव जन है, पेटउदर समान शूद्रण हरएक मानव जन है और चरण समान हरएक मानव जन है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म करते हैं। यह महर्षि नारायण वेदमंत्र दर्शनशास्त्र अनुसार सबजन को मानने का समान अवसर उपलब्ध है। ऊंचा नीचा पद विभाग जीविकोपार्जन के लिए पाने का मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। 1- अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन। 2- सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय। 3- उत्‍पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण। 4- वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य। - चारो वर्ण कर्म विभाग में वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन हैं। यह पंचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण व्यवस्था है।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    निष्पक्ष सोच अपनाकर दिमाग सदुपयोग कर सनातन धर्म संस्कार स्मृति धर्मशास्त्र विधि-विधान की तुलना बाईबल बबाल, कुरान कुराह, बौद्धधम्म बुद्धुओ और नंगेजिन्न गुरुओ की किताबो के धर्म धम्म पंथो से करनी चाहिए । साम्प्रदायिक पंथी गुरुओ ने मानवता इन्सानियत हित अहित में क्या क्या नियम बनाये हैं और लोगो को पता चल सके कि साम्प्रदायिक गुरुओ ने अपना अंधभक्त बनाकर मांइड सेटिंग कर बिगाङ कर पूर्वज देवताओ ऋषिओ की श्रेष्ठ सनातन वैदिक धर्म संस्कार संस्कृति का क्या क्या बिगाङ करवाया है ? निगेटिव एटीट्यूड रखकर निकृष्ट स्तर की पोस्ट बनाकर व्यर्थ बकवास करना अज्ञानतापूर्ण सोच जाहिर करना होता है। धर्म संस्कार गुण नियम पालन किये बिना इंसान मानव पाशविक सोच रखकर जीवन बिगाङ करते हैं अपना और दूसरो का। मनु महाराज विधान धर्म शास्त्र में आठ धर्म विधान नियम श्लोक हैं जैसे कि ब्राह्म, देव, प्राजापत्य, आर्ष, गन्धर्व, असुर, राक्षस और पिशाच। इन सभी को अलग अलग तौर पर समझना चाहिए । शिक्षित होकर व्यर्थ अन्धविरोध ईर्ष्याग्रस्त सोच रखकर अनर्गल प्रलाप रात-दिन करना मूर्खतापूर्ण सोच उजागर करना होता है। व्यर्थ अन्धविरोध ईर्ष्याग्रस्त सोच रखकर व्यर्थ के चित्र बनाकर फिजूल असभ्य बकवास कर दण्डनीय अपराध नहीं करना चाहिए।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    कृष्ण ने पहाड़ पर्वत को नहीं उठाया था बल्कि ज्यादा वर्षा जल होने पर पहाड़ पर चढने के लिए कहा था। पानी जल का स्तर कम होने पर उतरना था। लेकिन बाद के काल में किसी ने किसी काल में परम्परा बना दी कि कृष्ण ने पहाड़ उठाया था। वही लोग बचपन से सुनते देखते पढते और बोलते रहते हैं तो उनके मांइड सेटिंग हो जाती है। जब मैं सही बात बताता हूँ तो लोग बुरा मानते हैं। यह मांइड सेटिंग कर जीने के कारण होता है। चर्च में और मस्जिद में भी हरएक हफ्ते प्रार्थना नमाज पढवाकर दोहरवाकर मांइड सेटिंग करवा दी जाती है जिसके कारण बाइबिलिक पन्थी ईसाई और कुरानिक पन्थ मतवाले मुस्लिम अपने अपने पूर्वज बहुदेव ऋषिओ देवताओ मुनिओ के पौराणिक वैदिक सनातन दक्ष धर्म सोलह संस्कार करना भूल कर जीते हैं। यह मांइड सेटिंग का सिद्धांत समझना चाहिए।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। चार आश्रम = ब्रह्मचर्य + गृहस्थ + वानप्रस्थ + यतिआश्रम। चार कर्म = चार वर्ण = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। हर इंसान ब्र‍ह्‍मत्व गुण रखते हैं, हर इंसान क्षत्रियत्व गुण रखता हैं , हरएक इंसान शूद्रत्व गुण रखते हैं और हर इंसान वैशत्व गुण रखते हैं । हर वो इंसान जनसेवक दासजन (सेवकजन) होते हैं जो वेतनमान पर वेतनभोगी होते हैं l हर वो इंसान व्रात्‍य होते हैं जो अनपढ़ अशिक्षित होते हैं l हर वो इंसान अशूद्र होते हैं जो व्यभिचारी जुआरी चाटुकार अनुत्पादक होते हैं l हर वो इंसान क्षुद्र होते हैं जो पशु तुल्य सोच रखते हैं l हर वो इंसान शूद्राण होते हैं जो तपस्वी उत्‍पादन करता होते हैं l चार वर्ण कर्मीजन = वो इंसान ब्राह्मण होता है जो शिक्षा देता है l हर वो इंसान क्षत्रिय होता है जो शासन रक्षा न्याय करता है l हर वो इंसान वैश्‍य होता है जो क्रय विक्रय व्यापार करता है l हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान हैं और स्त्री भी मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी है। शरीर के चार अंग के समान समाज के चार वर्ण कर्म विभाग हैं जैसे कि शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादन-शूद्रम और वितरण-वैशम। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। इन्ही चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर दासजन जनसेवक नौकरजन सेवकजन कार्यरत हैं। इन शब्दों के अर्थ को जानना चाहिए और ये शब्द किस कार्य करने के लिए रचित हुए हैं ये भी जानना चाहिए l जो भी इंसान अपने जिस भी गुण को कर्म से बढ़ाकर अपना कार्य करता है और जीविका कमाता है वो वही विभाग (वर्ण) वाला होता है l आचरण व्यवहार सबका अच्छा हो यह सभी को पसंद होता है l सनातन धर्म लक्षण - सभी मनुष्य जन के स्मरण हेतू l 1.हिंसा नही करना , 2.सत्य बोलना , 3.चोरी नही करना, 4.स्वच्छता रखना , 5.दस इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना , 6.श्राद्धकर्म करना (पूर्वज सम्मान), 7.अतिथि सत्कार करना , 8.दान / कर देना , 9.न्याय कर्म से धन लेना , 10.विनम्र भाव रखना , 11.पत्नी से संतान/योन सम्बंध प्राप्त करना , 12.दूसरे के शुभ कर्म से द्वेष नही करना l संक्षेप में चारो वर्ण (वर्ग) - ब्रह्म वर्ण (शिक्षण वर्ग), क्षत्रम वर्ण (शासन वर्ग), शूद्रम वर्ण (शिल्पोद्योग वर्ग) और वैशम वर्ण ( व्यापार वर्ग) इन्ही चारो वर्णो/वर्गों /विभागों में कार्य करने वाले स्वमं व्यवसायी जन एवं वेतन भोगी दास (सेवक/नौकर) जन को इन धर्म लक्षण नियमों को प्रतिदिन ॐ के जाप के साथ या अपनी इच्छा अनुसार किसी भी इष्ट को भी ध्यान रखकर इन धर्म लक्षण को स्मरण करना चाहिए l संस्कृत श्लोक । ॐ अंहिसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: l श्राद्धकर्मातिथेयं च दानमस्तेयमार्जवम् l प्रजनं स्वेषु दारेषु तथा चैवानसृयता l l एतं सामासिकं धर्मं चर्तुवण्र्येब्रवीन्मनु: ll जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्ष धर्म सनातनम। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम। ॐ ।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    सेवा में क्या काम आता है ? शिक्षित द्विज़न ( स्त्री पुरुष ) विचार कर जानें। जब यजुर्वेद में शूद्रन को तपसे होना लिखा है तो द्विज़न ( स्त्री पुरुष ) तप छोड़कर सेवा ही क्यों लिखते बोलते रहते हैं l शूद्रन को तपस्वी क्यों नहीं लिखते बोलते हैं? द्विजन ( स्त्री पुरष) शिक्षित होकर भी प्रिंट सुधार कार्य क्यों नहीं करते हैं ? चार वर्ण = चार विभाग = कर्म चार l 1 - ब्रह्म वर्ण = ज्ञान शिक्षा विभाग 2 - क्षत्रम वर्ण = ध्यान रक्षा विभाग 3 - शूद्रम वर्ण = उत्पादन विभाग 4 - वैशम वार्न = वितरण विभाग l पांचवे वेतन भोगी दास ज़न सेवक वर्ग भी इन्हीं चारों वर्ण विभाग कर्म को करते हैं l यही चारवर्ण पांचज़न सनातन वेद दर्शन व्यवस्था है l हरएक द्विज़न ( स्त्री पुरष ) मुख समान ब्राह्मण हैं, बांह समान क्षत्रिय हैं, पेट समान शूद्रन है और चरण समान वैश्य है l चरण चलने से व्यापार वितरण होता है इसलिए चरण समान वैश्य होता है l

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    शिक्षित मानव द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो ) ! हरेक ग्राम, ब्लॉक और जिले में कितने जन पैदा हुए, कितने जन बाहर से आकर बसे, यह जांच पड़ताल हरेक तीन महीने सौ दिन दिन में होनी चाहिए। इसी के साथ किस किस साम्प्रदायिक पंथी गुरुओ के फालोअर अंधभक्त होकर माइंड सेटिंग कर जीने वाले किस ग्राम, ब्लाक और जिले में कितने जन्मे और कितने बाहर से आकर बसे ? यह जन जांच पड़ताल हरेक सौ दिन तीन महीने में अवश्य होनी चाहिए। ताकि प्रदूषण खतरा, सड़क जाम खतरा , नाली जाम खतरा, बाढ जलभराव खतरा और भारत की पौराणिक वैदिक सनातन धर्म संस्कार संस्कृति पर खतरा उत्पन्न होने से पहले ही उन खतरो का समाधान है और जीविकोपार्जन जीवनयापन में राहत मिलती रहे। ग्राम और शहर में बसने रहने वाले की गिनती अवश्य होती रहनी चाहिए। साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पन्थी सोच से लिखवाई गयी किताब को संसद में बहस कर समान रूप विचार देने वाली बाते बच्चो को पढवाकर एकता की सोच बनवानी चाहिए। विश्व राष्ट्र धर्म- प्राजापत्य दक्षराज धर्म सनातनम। जनसेवा धर्म संस्कार = [ (ब्राह्म धर्म (शिक्षण ज्ञान कर्म ) + क्षात्र धर्म (सुरक्षा ध्यान कर्म) + शौद्र धर्म ( उत्‍पादण तपस कर्म ) + वैश्य धर्म ( वितरण तमस कर्म ) + ब्रह्मचर्य आश्रम धर्म ( ज्ञान प्राप्त कर्म ) + गृहस्थ आश्रम धर्म ( संतान प्राप्त कर्म ) ] + [ वानप्रस्थ आश्रम धर्म ( ऋण उतार कर्म ) + यतिआश्रम धर्म ( संन्यास मोक्ष कर्म ) ] । जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय अखण्ड भारत । जय वसुधैव कुटुम्बकम् ।।ॐ ।।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    विश्वमित्रो! ऊंचा नीचा पद विभाग जीविकोपार्जन के लिए पाने का मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। 1- अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन। 2- सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय। 3- उत्‍पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण। 4- वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य। - चारो वर्ण कर्म विभाग में वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन हैं। यह पंचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण व्यवस्था है।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    शिक्षित मानव द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो ) ! हरेक ग्राम, ब्लॉक और जिले में कितने जन पैदा हुए, कितने जन बाहर से आकर बसे, यह जांच पड़ताल हरेक तीन महीने सौ दिन दिन में होनी चाहिए। इसी के साथ किस किस साम्प्रदायिक पंथी गुरुओ के फालोअर अंधभक्त होकर माइंड सेटिंग कर जीने वाले किस ग्राम, ब्लाक और जिले में कितने जन्मे और कितने बाहर से आकर बसे ? यह जन जांच पड़ताल हरेक सौ दिन तीन महीने में अवश्य होनी चाहिए। ताकि प्रदूषण खतरा, सड़क जाम खतरा , नाली जाम खतरा, बाढ जलभराव खतरा और भारत की पौराणिक वैदिक सनातन धर्म संस्कार संस्कृति पर खतरा उत्पन्न होने से पहले ही उन खतरो का समाधान है और जीविकोपार्जन जीवनयापन में राहत मिलती रहे। ग्राम और शहर में बसने रहने वाले की गिनती अवश्य होती रहनी चाहिए। साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पन्थी सोच से लिखवाई गयी किताब को संसद में बहस कर समान रूप विचार देने वाली बाते बच्चो को पढवाकर एकता की सोच बनवानी चाहिए। विश्व राष्ट्र धर्म- प्राजापत्य दक्षराज धर्म सनातनम। जनसेवा धर्म संस्कार = [ (ब्राह्म धर्म (शिक्षण ज्ञान कर्म ) + क्षात्र धर्म (सुरक्षा ध्यान कर्म) + शौद्र धर्म ( उत्‍पादण तपस कर्म ) + वैश्य धर्म ( वितरण तमस कर्म ) + ब्रह्मचर्य आश्रम धर्म ( ज्ञान प्राप्त कर्म ) + गृहस्थ आश्रम धर्म ( संतान प्राप्त कर्म ) ] + [ वानप्रस्थ आश्रम धर्म ( ऋण उतार कर्म ) + यतिआश्रम धर्म ( संन्यास मोक्ष कर्म ) ] । जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय अखण्ड भारत । जय वसुधैव कुटुम्बकम् ।।ॐ ।।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    चार वर्ण कर्म धर्म- जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय धर्म कर्म- ब्राह्म धर्म कर्म का मतलब शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्म करना है। क्षत्रम धर्म का मतलब सुरक्षण न्याय चौकीदारी जनसेवा करना है। शौद्र धर्म कर्म का मतलब उत्पादन निर्माण उद्योग कर्म करना है और वैशम धर्म का वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय ट्रांसपोर्ट व्यापार कर्म करना है। चार वर्ण कर्म धर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। इन्ही चतुरवर्ण में पांचवेजन का धर्म वेतनमान पर दासजन जनसेवक नौकरजन सेवकजन कार्यरत होना है । यही चारवर्ण में चार धर्म (कर्तव्य) हैं।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम सनातन संस्कार। विषय : चार महापाप कर्म क्या होते हैं ? जानें। 1- ज्ञान को नष्ट करना , 2- मद्यपान करना, 3- चोरी करना और 4- परस्त्रीगमन करना । चार वर्ण कर्म विभाग होते है ? जानें । 1- शिक्षण-ब्रह्म , 2- क्षत्रम-सुरक्षण , 3- शूद्रण-उत्पादन + 4- वैशम-वितरण। चार वर्ण कैसे? 1 - ज्ञानसे -शिक्षण/ वैद्यन/संस्कार से (ब्रह्म वर्ण कर्म ) + 2 - ध्यानसे/सुरक्षण/न्याय/ चौकीदारी से (क्षत्रम वर्ण कर्म ) + 3 - तपसे/उत्पादन/निर्माण/उद्योगण से (शूद्रम वर्ण कर्म )+ 4 - तमसे/ वाणिज्य/वितरण/व्यापार से (वैशम वर्ण कर्म) । इन्ही चतुरवर्ण कर्म में पांचवेजन वेतनमान पर जनसेवक दासजन नौकरजन सेवकजन के रूप में कार्यरत हैं। चारो वर्णो कर्म विभागो में कार्यरत लोगो को चारो महापाप से बचाव कर जीना चाहिए ? चार महापाप हैं जैसे कि : 1- ज्ञान को नष्ट करना, 2- मद्यपान करना, 3- चोरी करना और 4- परस्त्रीगमन करना। पौराणिक वैदिक संस्कृत श्लोक विधिनियम - ॐ ब्रह्महा च सुरापश्च स्तेयी च गुरुतल्पगः। एते सर्वे पृथग्ज्ञेयाः महापातकीनो नराः।। चतुर्णामपि चैतेषां प्रायश्चित्तमकुर्वताम् । शरीरं धनसंयुक्त्तं दण्डं धर्म्यं प्रकल्पयेत् ।। वैदिक स्मृति ।। जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम ।। ॐ ।।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    चार कर्म = शिक्षा + सुरक्षा + उद्योग + व्यापार। चार वर्ण = ब्रह्म + क्षत्रम + शूद्रम + वैशम। चार आश्रम = ब्रह्मचर्य + गृहस्थ + वानप्रस्थ + यति आश्रम। चार मानव गुण = सत + रज + तप + तम। चार मुख्य शरीर अंग = मुख + बांह + पेट + चरण। चार युग = सतयुग + द्वापर + त्रेतायुग + कलयुग। चार वेद = ऋग्वेद + यजुर्वेद + सामवेद + अथर्ववेद।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    शिक्षित विद्वान द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो) ! आज लोकतंत्र विधान युग है। इसलिए कोर्ट में याचिका दायर करनी चाहिए और सरकार से मांग करनी चाहिए कि अगले पन्द्रह सौ दो हजार साल तक पौराणिक वैदिक सनातनी हिन्दूजनो से शादी विवाह करने पर मुस्लिमो इसाईयो को सनातनी वैदिक हिंदूजन बनना चाहिए। कुरान और बाइबिल फालो करना छोड़कर अपने पूर्वज ऋषिओ के पौराणिक वैदिक सनातन धर्म सोलह संस्कार विधि-विधान नियम अनुसार श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करना चाहिए। लोकतंत्र संविधान सुधार हुआ है तो साम्प्रदायिक गुरुओ के फालोअर अंधभक्त होकर माइंड सेटिंग कर बिगाङ कर जीने में भी धर्म कर्तव्य नियम संस्कार सुधार होना चाहिए। सबजन को समान अवसर उपलब्ध होना चाहिए। पिछले पंद्रह सौ दो हजार साल से साल से कुरान बाईबल को पढ़कर उसके अनुसार मत हासिल करना पड रहा है और श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करना मुश्किल हो रहा रहा है । लेकिन अब अगले पन्द्रह सौ दो हजार साल तक मुस्लिम मत हासिल करने वालो को और ईसाई मत हासिल करने वालो को अपने पूर्वज ऋषिओ का पौराणिक वैदिक सनातनी हिन्दूजन मतवाला फिर से होना चाहिए। यह सुधार मानव जनो के हितार्थ रहेगा।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    ब्रह्मा के पांच मुख का मतलब क्या है ? जानें। जब एक जन है तो वह मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य है और स्त्री भी मुख समान ब्रह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी है। एक मुख अध्यापक -ब्राह्मण है, दूसरा सुरक्षक - क्षत्रिय है, तीसरा मुख उत्पादक शूद्राण है ,चौथा मुख वितरक वैश्य है और पांचवे मुख का मतलब है दासजन/ जनसेवक है जोकि चारो वर्ण कर्म विभाग में सहयोग करने वाला है। यह चारवर्ण पांचज़न सनातन वेद दर्शन शास्त्र विधान अनुसार वर्ण कर्म विभाग जीविकोपार्जन समाज प्रबन्धन विषय है। प्रत्यक्ष प्रमाण है । ब्रह्म = ज्ञानसे । ज्ञान मुखसे । ब्रह्म वर्ण = ज्ञान विभाग। ब्राह्मण = ज्ञानदाता/ अध्यापक/ गुरूजन/ विप्रजन/ पुरोहित/ आचार्य/ अनुदेशक/ चिकित्सक/ संगीतज्ञ। क्षत्रम = ध्यानसे । बांह से । क्षत्रम वर्ण = ध्यान न्याय रक्षण विभाग। क्षत्रिय = सुरक्षक बल चौकीदार न्यायाधीश । शूद्रम = तपसे = पेटऊरू से । शूद्रम वर्ण = उत्पादन निर्माण उद्योग विभाग। शूद्राण = उत्पादक निर्माता उद्योगण तपस्वी । वैशम =तमसे । व्यापार से = चरण से । वैशम वर्ण = वितरण विभाग। वैश्य = वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर। चरण पांव चलाकर ही व्यापार ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है । दासजन/ जनसेवक = वेतनभोगी /नौकरजन।सेवकजन/भृत्यजन। चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरतजन। जय विश्व राष्ट्र प्रजापत्य दक्ष धर्म सनातनम वर्णाश्रम संस्कार। जय अखण्डभारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।ॐ।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    शूद्रं का मतलब उत्पादक निर्माता उद्योगण। अशूद्र का मतलब व्यभीचारी नपुसंक जुआरी चाटुकार। क्षुद्र का मतलब पाशविक सोच रखने वाला।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    चार कर्म = शिक्षण + सुरक्षण + उत्पादन + वितरण। चार वर्ण = ब्रह्म + क्षत्रम + शूद्रम + वैशम । चार गुण = सत + रज + तप + तम। इस पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करवाओ। हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण ( अध्यापक/ज्ञानी) हैं इसलिए हरएक मानव जन नामधारी ब्रह्मण वर्ण मानकर बताकर जीवनयापन कर सकते हैं। यह महर्षि नारायण वेदमंत्र दर्शनशास्त्र अनुसार और हरएक मानव जन शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत वर्ग कर्म करने वाले ब्रह्मण ( अध्यापक/ वैद्यन /पुरोहित) हैं। इसप्रकार हरएक पेशाजाति कर्म करने वाले मुख समान ब्रह्मण हैं और जब अपने पेशेवर जाति कार्य का शिक्षण प्रशिक्षण आदान-प्रदान कर्म करते हैं तब वे कर्मधारी ब्रह्मण ( अध्यापक) होते हैं। यह चतुरवर्ण कर्म को जानने के लिए निष्पक्ष सोच अपनाकर सत्य शाश्वत सनातन सदाबहार ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करवाओ। गुलाम नौकर दासजन जनसेवक सेवकजन दासजन चारो वर्ण और चारो आश्रम में वेतनमान दान पर कार्यरत होते हैं।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    शूद्रं कौन? सनातन दक्षधर्म अनुसार ? शूद्रं शब्द का मतलब तपस्वी है । यजुर्वेद मंत्र - तपसे शूद्रं । शूद्रं शब्द में बडे श पर बडे ऊ की मात्रा लगाकर अंक की बिंदी लगी है। यह बिंदी अवश्य लगानी चाहिए। अंक की बिंदी लगने से शूद्रन/ शूद्रण/ शूद्रम भी लिख बोल सकते हैं। चारवर्ण चारकर्म चारविभाग जीविका विषय अनुसार उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार ही शूद्रण है। कर्म चार = = वर्ण चार = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। पांचवेजन जनसेवक दासजन नौकरजन सेवकजन भी इन्ही चतुरवर्ण चतुर कर्म विभाग में वेतनमान पर कार्यरत हैं। वेदमंत्र दर्शनशास्त्र ज्ञान विज्ञान विधान अनुसार और प्रत्यक्ष कर्म अनुसार प्रमाण हैं। कुछ किताबो में शूद्रन का मतलब तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण ना लिखकर सिर्फ सेवक लिख कर गलती कर रहे हैं । शिक्षित द्विजन ( स्त्री-पुरुष) को सुधार कर बोलना लिखना चाहिए और सुधार कर प्रिंट करना चाहिए। अनुचित लेखन कर्म अनुचित बोलना लिखना वेद विरूद्ध करते रहते हैं आजकल अज्ञजन । लेखक प्रकाशक जन अज्ञानता में सुधार नहीं करते हैं। द्विज और द्विजोत्तम भी अलग अलग हैं। चारो वर्ण कर्म विभाग वाले सवर्ण और असवर्ण होते हैं। शूद्रण भी द्विज और पवित्र होता और चार वर्ण कर्म विभाग अनुसार उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार तपस्वी होता है। जो द्विज तपश्रम उद्योग उत्पादन निर्माण कार्य करते हैं वे शूद्रण हो जाते हैं। अशूद्र अब्राहण अछूत व्यभीचारी जुआरी नपुंसक चाटुकार होता है। क्षुद्र पाशविक सोच रखकर जीने वाला होता है। इस पोस्ट को कापी कर अन्य सबजन को लेखक प्रकाशक को भेजकर कर प्रिंट सुधार करवाएं।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    भावनायें तो पिछले तीन हजार साल से दुनिया-भर में आहत हो रही हैं कियोंकि पिछले तीन हजार साल से साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पंथी सोच से लिखवायी गयी किताबो के विचार सनातन धर्मियों के रिश्ते नाते संस्कार बिगाङ करवा कर लोगो के मत परिवर्तन करवा कर एक दूसरे को भड़का रहे हैं और मत परिवर्तन करवा रहे हैं।बताओ चरण पांव चलाए बिना स्थान बदले बिना कोई प्रोडक्ट समान एक स्थान से क्रय कर ट्रांसपोर्ट कर दूसरे स्थान पर विक्रय वितरण वाणिज्य आढ़त कैसे होगा?बताओ चार वर्ण कर्म जैसे कि शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादन-शूद्रम और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किए बिना जीविकोपार्जन प्रबन्धन और समाज सुरक्षा प्रबंधन कैसे होगा? बताओ किस राष्ट्र राज्य देश प्रदेश में चार वर्ण कर्म विभाग का प्रबंधन विधान किये बिना समाज संचालन हो रहा है? बताओ चार वर्ण कर्म जैसे कि शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादन-शूद्रम और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किए बिना जीविकोपार्जन प्रबन्धन और समाज सुरक्षा प्रबंधन कैसे होगा? बताओ किस राष्ट्र राज्य देश प्रदेश में चार वर्ण कर्म विभाग का प्रबंधन विधान किये बिना समाज संचालन हो रहा है? असभ्य बकवास करना क्षुद्रक पाशविक सोच उजागर करना सवाल का जवाब नहीं होता है? असभ्य बकवास करना दण्डनीय अपराध होता है।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    सुनो ! विश्व राष्ट्र के राजनेताओ! शासन सत्ता में बने रहने के लिए तुम लोग जनता से कर टैक्स लेकर युवाओ को लडाई युद्ध में झोक देते हो और क्षुद्रक पाशविक सोच रखकर मानवता का नुकसान करते हो। तुम लोगो का काम राष्ट्र राज्य का चौकीदार होकर मानव जनो के जन ,धन और जमीन की सुरक्षा करना होता है। अपने पड़ोसी छोटे देश की जरूरत अनुसार सहयोग करना होना चाहिए नाकि उसपर आक्रमण कर हिंसात्मक अमानवीय कुकर्म करना। जब कोई छोटा देश आक्रमण करे तो उसको दण्ड देकर सुधार करना चाहिए। बडे देशो के राजनेताओ को सत्ता के अंहकार में युवाओ को वेवजह हिंसात्मक कार्य करने के लिए उपयोग नहीं करना चाहिए। युवा ग्रहस्थ आश्रमी ही अन्य तीनो आश्रमी ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और यतिआश्रम में जीने वालो का भरण-पोषण करना होता है। इसलिए युवाओ को अपने सत्ता स्वार्थ लालच में युवाओ को हिंसात्मक अनावश्यक कुकर्म में नहीं झोकना चाहिए। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्ष धर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम् ।। ॐ ।। एक जन = एक वोट = एक एकङ उपजाऊ जमीन हो । हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान हैं और स्त्री भी मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी है। शरीर के चार अंग के समान समाज के चार वर्ण कर्म विभाग हैं जैसे कि शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादन-शूद्रम और वितरण-वैशम। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। इन्ही चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर दासजन जनसेवक नौकरजन सेवकजन कार्यरत हैं। इन शब्दों के अर्थ को जानना चाहिए और ये शब्द किस कार्य करने के लिए रचित हुए हैं ये भी जानना चाहिए l जो भी इंसान अपने जिस भी गुण को कर्म से बढ़ाकर अपना कार्य करता है और जीविका कमाता है वो वही विभाग (वर्ण) वाला होता है । सनातन धर्म लक्षण - सभी मनुष्य जन के स्मरण हेतू l 1.हिंसा नही करना , 2.सत्य बोलना , 3.चोरी नही करना, 4.स्वच्छता रखना , 5.दस इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना , 6.श्राद्धकर्म करना (पूर्वज सम्मान), 7.अतिथि सत्कार करना , 8.दान / कर देना , 9.न्याय कर्म से धन लेना , 10.विनम्र भाव रखना , 11.पत्नी से संतान/योन सम्बंध प्राप्त करना , 12.दूसरे के शुभ कर्म से द्वेष नही करना l संक्षेप में चारो वर्ण (वर्ग) - ब्रह्म वर्ण (शिक्षण वर्ग), क्षत्रम वर्ण (शासन वर्ग), शूद्रम वर्ण (शिल्पोद्योग वर्ग) और वैशम वर्ण ( व्यापार वर्ग) इन धर्म लक्षण को स्मरण करना चाहिए l संस्कृत भाषा श्लोक विधिनियम । ॐ अंहिसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: l श्राद्धकर्मातिथेयं च दानमस्तेयमार्जवम् l प्रजनं स्वेषु दारेषु तथा चैवानसृयता l l एतं सामासिकं धर्मं चर्तुवण्र्येब्रवीन्मनु: ll जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्ष धर्म सनातनम। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम। ॐ ।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार। धर्मगुरु /पुरोहित/ पन्थगुरु/ अध्यापक/ चिकित्सक/धर्माचार्य/ कविजन/ विप्रजन/ शिक्षक ( ब्रह्मण ) का सदाचार आचरण व्यवहार कैसा होना चाहिए ? जाने ! इस पोस्ट के विषय ज्ञान अनुसार उचित विचार संस्कार नियम पालन करते हुए अन्य सबजन को मानवीय मूल्य वाले संस्कार प्राप्त करवाते हुए अपराध मुक्त वातावरण बनवाते रहें। अध्यापक/ धर्माचार्य को - 1- सत्यवादी आचरण व्यवहार वाला होना चाहिए , 2 - शुद्ध चित आचरण रखने वाला होना चाहिए, 3 - सत्यवृतपरायण आचरण वाला होना चाहिए, 4 - नित्य सनातन दक्षधर्म में रत होना चाहिए, 5 - शान्त चित वाला बने रहने वाला होना चाहिए, 6 - व्यर्थ अनर्गल बातो से रहित होना चाहिए, 7- द्रोहरहित स्वभाव वाला होना चाहिए, 8 - चोरकर्म से रहित सही आदत वाला होना चाहिए, 9 - प्राणियो के हित में लगे रहने वाला होना चाहिए, 10 - अपनी स्त्री भार्या में रत रहने वाला होना चाहिए, 11- सविनय नर्म स्वभाव वाला होना चाहिए, 12- न्याय प्रिय सुरक्षक स्वभाव होना चाहिए, 13 - अकर्कश सरल स्वभाव वाला होना चाहिए, 14 - माता पिता का आज्ञाकारी होना चाहिए, 15 - गुरुओ का सम्मान करने वाला होना चाहिए, 16 - वृद्धो पर श्रद्धा रखने वाला होना चाहिए , 17- श्रद्घालु स्वभाव वाला होना चाहिए, 18ङ- वेदमंत्र दक्षधर्म शास्त्ररज्ञाता होना चाहिए, 19 - वैदिक धर्म संस्कार गुण क्रियावान होना चाहिए और 20- भिक्षा दान दक्षिणा वेतन से जीवन यावन करने वाला होना चाहिए। इन सभी बीस (20) मानवीय गुणों को विप्रजन/अध्यापक/ गुरूजन/ पुरोहित/ चिकित्सक /पन्थगुरु/अभिनयी/द्विजोत्तम/शिक्षक (ब्रह्मण) को अपनाकर जीना चाहिए ताकि इन्ही गुण स्वभाव वाले शिक्षको को देखकर इनसे प्रेरित होकर अन्य द्विजनों ( स्त्री-पुरुषो ) को आचरण व्यवहार निर्माण कर जीने में लाभ मिलता रहना चाहिए। पौराणिक वैदिक सतयुग संस्कृत भाषा श्लोक विधिनियम - ॐ सत्यवाक् शुद्धचेता यः सत्यव्रतपरायणः । नित्यं धर्मरतः शान्तः स भिन्नलापवर्जितः।। अद्रोहोऽस्तेयकर्मा च सर्वप्राणिहिते रतः। स्वस्त्रीरतः सविनया नयचक्षुरकर्कशः ।। पितृमातृवचः कर्ता गुरूवृद्धपराष्टि ( ति) कः । श्रध्दालुर्वेदशास्त्रज्ञः क्रियावान्भैक्ष्य जीवकः ।। जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय वर्णाश्रम संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।। विश्वराष्ट्र मित्रो! पौराणिक वैदिक पुरोहित संस्कार शिक्षको लिए बताए गए गुण नियम की तरह सभी साम्प्रदायिक पन्थी गुरुओ के बने नियमो को पोस्ट करना चाहिए, ताकि सबजन के विचार को तुलनात्मक रूप से विश्लेषण कर अध्ययन करना चाहिए और एक समान अवसर देने वाले मानवीय गुण क्रियावान कर संस्कार सुधार किये जाने चाहिएं । साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पन्थी सोच ने पौराणिक वैदिक सनातन प्रजापत्य दक्ष धर्म संस्कार विधि-विधान नियमों में क्या सुधार और क्या क्या बिगाङ किया है ? वह सबजन जानकर समझकर सुधार करना चाहिए सकें और अपने पूर्वजो बहुदेवो ऋषिओ की पौराणिक वैदिक श्रेष्ठ सनातन धर्म संस्कार विधि पहचान कर श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करना चाहिए। जय विश्व राष्ट्र दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    भावनायें तो पिछले तीन हजार साल से दुनिया-भर में आहत हो रही हैं कियोंकि पिछले तीन हजार साल से साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पंथी सोच से लिखवायी गयी किताबो के विचार सनातन धर्मियों के रिश्ते नाते संस्कार बिगाङ करवा कर लोगो के मत परिवर्तन करवा कर एक दूसरे को भड़का रहे हैं और मत परिवर्तन करवा रहे हैं।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    सुनो ! विश्व राष्ट्र के राजनेताओ! शासन सत्ता में बने रहने के लिए तुम लोग जनता से कर टैक्स लेकर युवाओ को लडाई युद्ध में झोक देते हो और क्षुद्रक पाशविक सोच रखकर मानवता का नुकसान करते हो। तुम लोगो का काम राष्ट्र राज्य का चौकीदार होकर मानव जनो के जन ,धन और जमीन की सुरक्षा करना होता है। अपने पड़ोसी छोटे देश की जरूरत अनुसार सहयोग करना होना चाहिए नाकि उसपर आक्रमण कर हिंसात्मक अमानवीय कुकर्म करना। जब कोई छोटा देश आक्रमण करे तो उसको दण्ड देकर सुधार करना चाहिए। बडे देशो के राजनेताओ को सत्ता के अंहकार में युवाओ को वेवजह हिंसात्मक कार्य करने के लिए उपयोग नहीं करना चाहिए। युवा ग्रहस्थ आश्रमी ही अन्य तीनो आश्रमी ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और यतिआश्रम में जीने वालो का भरण-पोषण करना होता है। इसलिए युवाओ को अपने सत्ता स्वार्थ लालच में युवाओ को हिंसात्मक अनावश्यक कुकर्म में नहीं झोकना चाहिए। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्ष धर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम् ।। ॐ ।। एक जन = एक वोट = एक एकङ उपजाऊ जमीन हो । हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान हैं और स्त्री भी मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी है। शरीर के चार अंग के समान समाज के चार वर्ण कर्म विभाग हैं जैसे कि शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादन-शूद्रम और वितरण-वैशम। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। इन्ही चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर दासजन जनसेवक नौकरजन सेवकजन कार्यरत हैं। इन शब्दों के अर्थ को जानना चाहिए और ये शब्द किस कार्य करने के लिए रचित हुए हैं ये भी जानना चाहिए l जो भी इंसान अपने जिस भी गुण को कर्म से बढ़ाकर अपना कार्य करता है और जीविका कमाता है वो वही विभाग (वर्ण) वाला होता है । सनातन धर्म लक्षण - सभी मनुष्य जन के स्मरण हेतू l 1.हिंसा नही करना , 2.सत्य बोलना , 3.चोरी नही करना, 4.स्वच्छता रखना , 5.दस इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना , 6.श्राद्धकर्म करना (पूर्वज सम्मान), 7.अतिथि सत्कार करना , 8.दान / कर देना , 9.न्याय कर्म से धन लेना , 10.विनम्र भाव रखना , 11.पत्नी से संतान/योन सम्बंध प्राप्त करना , 12.दूसरे के शुभ कर्म से द्वेष नही करना l संक्षेप में चारो वर्ण (वर्ग) - ब्रह्म वर्ण (शिक्षण वर्ग), क्षत्रम वर्ण (शासन वर्ग), शूद्रम वर्ण (शिल्पोद्योग वर्ग) और वैशम वर्ण ( व्यापार वर्ग) इन धर्म लक्षण को स्मरण करना चाहिए l संस्कृत भाषा श्लोक विधिनियम । ॐ अंहिसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: l श्राद्धकर्मातिथेयं च दानमस्तेयमार्जवम् l प्रजनं स्वेषु दारेषु तथा चैवानसृयता l l एतं सामासिकं धर्मं चर्तुवण्र्येब्रवीन्मनु: ll जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्ष धर्म सनातनम। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम। ॐ ।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार। धर्मगुरु /पुरोहित/ पन्थगुरु/ अध्यापक/ चिकित्सक/धर्माचार्य/ कविजन/ विप्रजन/ शिक्षक ( ब्रह्मण ) का सदाचार आचरण व्यवहार कैसा होना चाहिए ? जाने ! इस पोस्ट के विषय ज्ञान अनुसार उचित विचार संस्कार नियम पालन करते हुए अन्य सबजन को मानवीय मूल्य वाले संस्कार प्राप्त करवाते हुए अपराध मुक्त वातावरण बनवाते रहें। अध्यापक/ धर्माचार्य को - 1- सत्यवादी आचरण व्यवहार वाला होना चाहिए , 2 - शुद्ध चित आचरण रखने वाला होना चाहिए, 3 - सत्यवृतपरायण आचरण वाला होना चाहिए, 4 - नित्य सनातन दक्षधर्म में रत होना चाहिए, 5 - शान्त चित वाला बने रहने वाला होना चाहिए, 6 - व्यर्थ अनर्गल बातो से रहित होना चाहिए, 7- द्रोहरहित स्वभाव वाला होना चाहिए, 8 - चोरकर्म से रहित सही आदत वाला होना चाहिए, 9 - प्राणियो के हित में लगे रहने वाला होना चाहिए, 10 - अपनी स्त्री भार्या में रत रहने वाला होना चाहिए, 11- सविनय नर्म स्वभाव वाला होना चाहिए, 12- न्याय प्रिय सुरक्षक स्वभाव होना चाहिए, 13 - अकर्कश सरल स्वभाव वाला होना चाहिए, 14 - माता पिता का आज्ञाकारी होना चाहिए, 15 - गुरुओ का सम्मान करने वाला होना चाहिए, 16 - वृद्धो पर श्रद्धा रखने वाला होना चाहिए , 17- श्रद्घालु स्वभाव वाला होना चाहिए, 18ङ- वेदमंत्र दक्षधर्म शास्त्ररज्ञाता होना चाहिए, 19 - वैदिक धर्म संस्कार गुण क्रियावान होना चाहिए और 20- भिक्षा दान दक्षिणा वेतन से जीवन यावन करने वाला होना चाहिए। इन सभी बीस (20) मानवीय गुणों को विप्रजन/अध्यापक/ गुरूजन/ पुरोहित/ चिकित्सक /पन्थगुरु/अभिनयी/द्विजोत्तम/शिक्षक (ब्रह्मण) को अपनाकर जीना चाहिए ताकि इन्ही गुण स्वभाव वाले शिक्षको को देखकर इनसे प्रेरित होकर अन्य द्विजनों ( स्त्री-पुरुषो ) को आचरण व्यवहार निर्माण कर जीने में लाभ मिलता रहना चाहिए। पौराणिक वैदिक सतयुग संस्कृत भाषा श्लोक विधिनियम - ॐ सत्यवाक् शुद्धचेता यः सत्यव्रतपरायणः । नित्यं धर्मरतः शान्तः स भिन्नलापवर्जितः।। अद्रोहोऽस्तेयकर्मा च सर्वप्राणिहिते रतः। स्वस्त्रीरतः सविनया नयचक्षुरकर्कशः ।। पितृमातृवचः कर्ता गुरूवृद्धपराष्टि ( ति) कः । श्रध्दालुर्वेदशास्त्रज्ञः क्रियावान्भैक्ष्य जीवकः ।। जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय वर्णाश्रम संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।। विश्वराष्ट्र मित्रो! पौराणिक वैदिक पुरोहित संस्कार शिक्षको लिए बताए गए गुण नियम की तरह सभी साम्प्रदायिक पन्थी गुरुओ के बने नियमो को पोस्ट करना चाहिए, ताकि सबजन के विचार को तुलनात्मक रूप से विश्लेषण कर अध्ययन करना चाहिए और एक समान अवसर देने वाले मानवीय गुण क्रियावान कर संस्कार सुधार किये जाने चाहिएं । साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पन्थी सोच ने पौराणिक वैदिक सनातन प्रजापत्य दक्ष धर्म संस्कार विधि-विधान नियमों में क्या सुधार और क्या क्या बिगाङ किया है ? वह सबजन जानकर समझकर सुधार करना चाहिए सकें और अपने पूर्वजो बहुदेवो ऋषिओ की पौराणिक वैदिक श्रेष्ठ सनातन धर्म संस्कार विधि पहचान कर श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करना चाहिए। जय विश्व राष्ट्र दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार = राष्ट्र राज धर्म= जनसेवक/दासधर्म × [(ब्राह्म+क्षात्र+शौद्र+वैश्व धर्म) + (ब्रह्मचर्य+गृहस्थ+वानप्रस्थ+यति आश्रम)] । ब्राह्म धर्म= ब्रह्म वर्ण कर्म (अध्यापन कर्म) । संस्कृत श्लोक विधिनियम - ॐ यथा यथा हि पुरूष: शास्त्रं समधिगच्छति । तथा तथा विजानाति विज्ञानं चास्य रोचते। शास्त्रस्य पारं गत्वा तु भूयो भूयस्तदभ्यसेत् । तच्छास्त्रं शबलं कुर्यान्न चाधीत्य त्यजेत्पुन: ।। पौराणिक वैदिक ऋषि स्मृति धर्मशास्त्र।। भावार्थ- मनुष्य जैसे जैसे विशेष रूप से शास्त्रो का अच्छी प्रकार अध्ययन अभ्यास करता है वैसे वैसे वह विषय ज्ञान जानकर विज्ञान सम्मत विश्लेषण करने लगता है। अपने शास्त्र का पारगामी होकर बार-बार अभ्यास करना चाहिए और ज्ञानवर्धन कर फिर से ज्ञान प्राप्त करना नहीं छोड़ना चाहिए। पांचजन्य चार वर्णिय चार आश्रमिय चार कर्मिय समाज प्रबंधन। विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम्। जय अखण्ड भारत । जय वसुधैव कुटुम्बकम ।। ॐ ।।

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    विश्व राष्ट्र मित्रो ! पौराणिक वैदिक सतयुग प्राजापत्य धर्म सनातनम् - यजुर्वेद संहिता - वेद दर्शन अनुसार- हे सूर्यअग्नि देव l राष्ट्र हित में देश के सभी मनुष्यों में जोश उत्पन्न करें l जिससे राष्ट्र राज्य उन्नति करे और विश्व राष्ट्र में श्रेष्ठ देश बने l 1- जो मानव जन अध्यापन/शिक्षा/स्वास्थ्य/संगीत/ संस्कार शिक्षण सेवा विभाग (ब्र‍हम् वर्ण) में शिक्षक पुरोहित चिकित्सक संज्ञीतज्ञ जनसेवा कर्मी हैं उनमें जोश तेज स्थापित करें l वे ईमानदारी से सभी मानव जन को शिक्षा स्वास्थ्य संगीत संस्कार निष्पक्ष सोच रखकर जनशिक्षण जनसेवा प्रदान करें l 2 - जो मानव जन सुरक्षा शासन बल न्याय विभाग (क्षत्रम् वर्ण) में सुरक्षा कर्मी हैं उनमें शौर्य तेज स्थापित करें l वे ईमानदारी से सभी मानव जन की सुरक्षा करते हुए न्याय सेवा प्रदान कर जनसेवा करें l 3 - जो वित्त व्यापार वाणिज्य विभाग (वैशम् वर्ण) में वित्त/ क्रय विक्रय वितरन /व्यापारी कर्मी हैं उनमें जोश तेज स्थापित करें l वे ईमानदारी से जनहित में व्यापार वितरन ट्रांसर्पोट वाणिज्य क्रय विक्रय जनसेवा कार्य करें l 4 - जो मानव जन उत्पादन निर्माण शिल्प विभाग (शूद्रम् वर्ण) में उत्पादक उद्योगण निर्माता शिल्पोद्योग कर्मी हैं उनमें भी तेज जोश स्थापित करें l वे ईमानदारी से तपश्रम उद्योग कर्म करके अच्छे उत्पाद निर्माण कर बनाकर सबजन को उत्पादन निर्माण जनसेवा प्रदान करें l 5 - मेरे जैसे ॠषिजन जनसेवक दासजन के अन्दर भी तेज शौर्य उत्पन्न करें ताकि चतुरवर्ण में जनसेवक नौकरजन के रूप में सहयोग करते रहें। यजुर्वेद संहिता वेदमंत्र - ॐ रूचन्नो धेही ब्रह्मनेषु रूचनंराजसु नस्कृधि l रूचं विश्येषु शूद्रेषु मयि धेही रूचा रूचम् l l यजुर्वेद संहिता l चार कर्म ( शिक्षण+ सुरक्षण+ उत्पादन+ वितरण) = चार वर्ण ( ब्रह्म + क्षत्रम + शूद्रम + वैशम) । पांचजन = जनसेवक/नौकरजन ( अध्यापक ब्राह्मण + सुरक्षक क्षत्रिय + उत्पादक शूद्राण + वितरक वैश्य) । सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। उत्तम राह जीवन यापन। जय विश्व राष्ट्र पौराणिक सतयुग प्राजापत् दक्ष धर्म सनातनम् l जय आखण्ड भारत l जय वसुधैव कुटुम्बकम् l 🕉 l

  • @budhprakash9200
    @budhprakash9200 11 часов назад

    शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें - चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं , क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं, शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए। चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है। बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है। सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।