Adhyatmyogi Veersagarji
Adhyatmyogi Veersagarji
  • Видео 1 491
  • Просмотров 229 891
Y#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)ध्यान शिविर,बाहुबली 2019-बा.ब्र.जितेन्द्रजी#meditation #om#prayer#art#guru#jai
#morning meditation
Y#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)-ध्यान शिविर,बाहुबली2019--बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी
#meditation#meditation prayer#mrbeast#झाणं#guru#ध्यान
#om #meditation in jainism #nirvikalpasamadhi #Dhyan
#rupastha Dhyan #mindfulness meditation
PUBLISHED ON -FRIDAY 27-12-2024
निज निज नाना पर्यायेषु तदेव इदं इति द्रव्यस्य नित्यस्वभाव:।आ.प.११३,ये नित्यम द्रव्यम् आश्रित्य वर्तन्ते ते गुणा:। सर्वार्थसिद्धि
तद् भाव अव्ययम् नित्यं। त.सू., ---निष्क्रियो पारिणामिक:।---समयसार ता.वृ.३२०
#को न विमुह्यति शास्त्रसमुद्रे---इस युग के देश विदेश में ख्यातिप्राप्त विद्वान आ.डाॅ.श्री. हुकुमचंदजी भारील्लजी द्वारा उनके नयचक्र में --द्रव्यार्थिक & पर्यायार्थिक २ नय आगम के कहे गये है।, वह आगम के न होकर मुल २ नयों मे...
Просмотров: 75

Видео

B3#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
Просмотров 4415 часов назад
#jainphilosophy #jainology B3#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा, अकलुज#art#meditation#prayer#amaizing#jain#guru #jainism#mrbeast#dravyaguna#om#afternoon MONDAY-24/12/2024 निज निज नाना पर्यायेषु तदेव इदं इति द्रव्यस्य नित्यस्वभाव:।आ.प.११३,ये नित्यम द्रव्यम् आश्रित्य वर्तन्ते ते गुणा:। सर्वार्थसिद्धि तद् भाव अव्ययम् नित्यं। त.सू., निष्क्रियो पारिणामिक:। समयसार ता.वृ.३२० ...
19#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
Просмотров 6716 часов назад
#jainphilosophy #jainology 19-भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू.१०५ श्री सुशीलमतीजी & सुव्रताजी माताजी #prayer#om#art#guru#jainphilosophy#jainपरिपूर्णचैतन्यस्वरुपोSहम्। #prayer#om#art#guru #jainphilosophy #jainology #amaizing#jain#guru #jainism#mrbeast#dravyaguna#om PUBLISHED ON -THURSDAY 25-12-2024 *👇 IMP e-books pdf & All Charts pdf 👇* drive.google.com/drive/folders/1LoQDGk9HNlU8APZ6gXtABjJcPagUJ_x...
ZD#ध्यान पिंडस्थ-वा.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019बा.ब्र.श्रीजितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art
Просмотров 792 часа назад
#adhyatm yog #meditation #morning #meditation in Jainism ZD#ध्यान पिंडस्थ-वा.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019-बा.ब्र.श्री.जितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art#meditation #mrbeast#ध्यान #meditation morning#om #mindfulness meditation #mornings prayer#nirvikalpasamadhi Dhyan #Dhyanpindastha PUBLISHED ON THURSDAY-26-12-2024 निज निज नाना पर्यायेषु तदेव इदं इति द्रव्यस्य नित्यस्वभाव:।आ.प.११३,ये नित्...
B2#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
Просмотров 992 часа назад
#jainphilosophy #jainology B2#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा, अकलुज#art#meditation#prayer#amaizing#jain#guru #jainism#mrbeast#dravyaguna#om#afternoon MONDAY-24/12/2024 निज निज नाना पर्यायेषु तदेव इदं इति द्रव्यस्य नित्यस्वभाव:।आ.प.११३,ये नित्यम द्रव्यम् आश्रित्य वर्तन्ते ते गुणा:। सर्वार्थसिद्धि तद् भाव अव्ययम् नित्यं। त.सू., निष्क्रियो पारिणामिक:। समयसार ता.वृ.३२० ...
18#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
Просмотров 742 часа назад
#jainphilosophy #jainology 18-भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू.१०५ श्री सुशीलमतीजी & सुव्रताजी माताजी #prayer#om#art#guru#jainphilosophy#jainपरिपूर्णचैतन्यस्वरुपोSहम्। #prayer#om#art#guru #jainphilosophy #jainology #amaizing#jain#guru #jainism#mrbeast#dravyaguna#om PUBLISHED ON -SATURDAY 22-12-2024 *👇 IMP e-books pdf & All Charts pdf 👇* drive.google.com/drive/folders/1LoQDGk9HNlU8APZ6gXtABjJcPagUJ_x...
X#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)ध्यान शिविर,बाहुबली 2019-बा.ब्र.जितेन्द्रजी#meditation #om#prayer#art#guru#jai
Просмотров 1424 часа назад
#morning meditation X#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)-ध्यान शिविर,बाहुबली2019 बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी #meditation#meditation prayer#mrbeast#झाणं#guru#ध्यान #om #meditation in jainism #nirvikalpasamadhi #Dhyan #rupastha Dhyan #mindfulness meditation PUBLISHED ON -WEDNESDAY 25-12-2024 निज निज नाना पर्यायेषु तदेव इदं इति द्रव्यस्य नित्यस्वभाव:।आ.प.११३,ये नित्यम द्रव्यम् आश्रित्य वर्तन्ते ते गुणा:। सर्वार्...
ZA#ध्यान पिंडस्थ-वा.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019बा.ब्र.श्रीजितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art
Просмотров 1047 часов назад
#adhyatm yog #meditation #morning #meditation in Jainism ZA#ध्यान पिंडस्थ-वा.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019-बा.ब्र.श्री.जितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art#meditation #mrbeast#ध्यान #meditation morning#om #mindfulness meditation #mornings prayer#nirvikalpasamadhi Dhyan #Dhyanpindastha PUBLISHED ON SUNDAY-22-12-2024 निज निज नाना पर्यायेषु तदेव इदं इति द्रव्यस्य नित्यस्वभाव:।आ.प.११३,ये नित्यम...
9#समयसार कलश 84A-प.पू१०८श्री वीरसागरजी म#mrbeast#guru#gurudev#om#art #love#prayer#live#mr beast#jai
Просмотров 877 часов назад
#jainphilosophy #jainology 9#समयसार कलश 84-A-प.पू.१०८श्री वीरसागरजी महाराज #samaysaar#om#art#meditation#prayer#amaizing#jain#guru #jainism#mrbeast#dravyaguna#om#afternoon PUBLISHED ON MONDAY 23 DECEMBER 2024 *👇 IMP e-books pdf & All Charts pdf 👇* drive.google.com/drive/folders/1LoQDGk9HNlU8APZ6gXtABjJcPagUJ_xf भवतापनाशक जिन-अध्यात्म का सार आचार्यवर श्री.कुन्दकुन्ददेव ने आज से २००० वर्ष पहिले श्...
V#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)ध्यान शिविर,बाहुबली 2019-बा.ब्र.जितेन्द्रजी#meditation #om#prayer#art#guru#jai
Просмотров 1659 часов назад
#morning meditation V#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)-ध्यान शिविर,बाहुबली2019 बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी #meditation#meditation prayer#mrbeast#झाणं#guru#ध्यान #om #meditation in jainism #nirvikalpasamadhi #Dhyan #rupastha Dhyan #mindfulness meditation PUBLISHED ON -MONDAY 23-12-2024 निज निज नाना पर्यायेषु तदेव इदं इति द्रव्यस्य नित्यस्वभाव:।आ.प.११३,ये नित्यम द्रव्यम् आश्रित्य वर्तन्ते ते गुणा:। सर्वार्थसि...
17#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
Просмотров 629 часов назад
17#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
B1#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
Просмотров 1139 часов назад
B1#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
Z#ध्यान पिंडस्थ-अ.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019बा.ब्र.श्री.जितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art
Просмотров 9512 часов назад
Z#ध्यान पिंडस्थ-अ.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019बा.ब्र.श्री.जितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art
16#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
Просмотров 7212 часов назад
16#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
A21#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
Просмотров 8412 часов назад
A21#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
U#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)ध्यान शिविर,बाहुबली 2019-बा.ब्र.जितेन्द्रजी#meditation #om#prayer#art#guru#jai
Просмотров 15314 часов назад
U#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)ध्यान शिविर,बाहुबली 2019-बा.ब्र.जितेन्द्रजी#meditation #om#prayer#art#guru#jai
15#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
Просмотров 8214 часов назад
15#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
W#ध्यान पिंडस्थ-अ.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019बा.ब्र.श्री.जितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art
Просмотров 13616 часов назад
W#ध्यान पिंडस्थ-अ.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019बा.ब्र.श्री.जितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art
A20#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
Просмотров 12616 часов назад
A20#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
12#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
Просмотров 7316 часов назад
12#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
S#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)ध्यान शिविर,बाहुबली 2019-बा.ब्र.जितेन्द्रजी#meditation #om#prayer#art#guru#jai
Просмотров 21619 часов назад
S#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)ध्यान शिविर,बाहुबली 2019-बा.ब्र.जितेन्द्रजी#meditation #om#prayer#art#guru#jai
A19#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
Просмотров 8719 часов назад
A19#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
T#ध्यान पिंडस्थ-अ.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019बा.ब्र.श्री.जितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art
Просмотров 9221 час назад
T#ध्यान पिंडस्थ-अ.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019बा.ब्र.श्री.जितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art
14#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
Просмотров 9421 час назад
14#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
A18#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
Просмотров 12421 час назад
A18#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
R#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)ध्यान शिविर,बाहुबली 2019-बा.ब्र.जितेन्द्रजी#meditation #om#prayer#art#guru#jai
Просмотров 120День назад
R#ध्यान रुपस्थ(हिन्दी)ध्यान शिविर,बाहुबली 2019-बा.ब्र.जितेन्द्रजी#meditation #om#prayer#art#guru#jai
A17#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
Просмотров 69День назад
A17#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
13#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
Просмотров 88День назад
13#भक्तामर स्तोत्र प्रवचन-प.पू१०५श्री सुशीलमतीजी&सुव्रताजीमाताजी#prayer#om#art#guru#mrbeast#jain#jai
Q#ध्यान पिंडस्थ-अ.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019बा.ब्र.श्री.जितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art
Просмотров 117День назад
Q#ध्यान पिंडस्थ-अ.धा(हिन्दी)ध्यान शिविर बाहुबली2019बा.ब्र.श्री.जितेन्द्रजी#meditation#om#prayer#art
A16#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain
Просмотров 95День назад
A16#परमात्मप्रकाश प्रवचन-आ.बा.ब्र.पं.श्री.जितेन्द्रजी चंकेश्वरा,अकलुज#guru#om#art#love#mrbeast#jain

Комментарии

  • @kiranshah6813
    @kiranshah6813 2 дня назад

    Namostu muniraj

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 3 месяца назад

    अन्योन्याभाव सभी ६ द्रव्यों मे लगता है। दो पुद्गल द्रव्यों में अत्यन्ताभाव हि लगता है --को न विमुह्यति शास्त्र समुद्रे -आगमाधार --धवला 15 पृष्ठ 29,30, प्रवचनसार गाथा सुत्र 106, आ.मी.का.11, अ.सह.पृ.109, का.अनुप्रेक्षा गा 230, अष्टशती, अष्टसहस्त्री पृ 100, जयधवल पु क्रं 12 पृष्ठ 304-305, अध्यात्म न्यायदीपिका पृष्ठ १२९ प्रकाशन- सुभाष म गांधी, रविवार पेठ, फलटण 415523 शास्त्राधार मिलने पर सुक्ष्म भुल में सुधार कर लेना ही सम्यग्दर्शन रुपी रत्न की संरक्षण करना है। गलती से जो भुल हो गयी--वो दुरुस्त करके-सम्यग्दर्शन की पात्रता भी बनी रहेगी। इस युग के अंत तक यह जिनशासन की ध्वजा आपके माध्यम से लहराती रहेगी --सर्वज्ञ शासन जयवंत वर्तो। ॐ नम:। (पर -अपर गुरुओं के माध्यम से प्राप्त हुआ जो सर्वज्ञ का मत है--वही हमारी धरोहर है।) drive.google.com/file/d/1b973rh2MUKHL7HablLs83p7bE8n63NaB/view?usp=drivesdk --"४ अभाव आगम की आलोक में" ruclips.net/video/p4HJL7VMmik/видео.html & ruclips.net/video/ote6WbAtGMA/видео.html

  • @kiranshah6813
    @kiranshah6813 6 месяцев назад

    Namostu muniraj

  • @mamtajain1293
    @mamtajain1293 6 месяцев назад

    Ye bhopal me kaha par ho raha hai

    • @108Veersagarji
      @108Veersagarji 6 месяцев назад

      जय जिनेन्द्र। यह 2018 में भोपाल के ध्यान शिविर कि पोस्ट है। करके B:18:Y ऐसा संकेत Thumbnail पे किया है। ॐ नम:।

  • @ranjanakothari8096
    @ranjanakothari8096 6 месяцев назад

    🙏👌🙏

  • @ranjanakothari8096
    @ranjanakothari8096 6 месяцев назад

    🙏👌🙏

    • @108Veersagarji
      @108Veersagarji 6 месяцев назад

      Pl refer Lecture No 12 @ Subject of Atmanubhava & Lecture No 70,71 also imp. Actually all lectures to be studied by sr no. Jay Jinendra.

  • @santoshshah6373
    @santoshshah6373 7 месяцев назад

    ❤ जय जिनेंद्र ❤❤❤ संतोष रतनचंद शहा,सोलापूर. (महाराष्ट्र)❤

    • @108Veersagarji
      @108Veersagarji 7 месяцев назад

      जय जिनेन्द्र। आलाप पद्धती स्वभाव अधिकार पर्यंत ची सुरवातीची 25 प्रवचने अतिमहत्वाची आहेत. लिंक ---ruclips.net/p/PLDzcmDTVXTQfOJU6BYlsDQdXZiHELQeBy

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    वस्तु विचारत ध्यावते,मन पावे विश्राम। रस स्वादत सुख उपजै,अनुभव याको नाम।---अ sहा s हा s ओs हो s हो s प्रभु वस्तु स्वरुप के चिंतवन में सविकल्प-- निर्विकल्प --सविकल्प--- निर्विकल्प दशा चलती ही रहती है। ---निर्विकल्प दशा का ऐसा जघन्य ध्यान अव्रती अवस्थासे होता है-- स्वाद चखके तो देखो-प्रभु!---करके सर्वप्रथम वस्तुस्वरुप के ज्ञान के लिए आलाप पद्धती पूर्वक अध्यात्मन्यायदीपिका का अभ्यास करो। ---ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    ---कह होदि सम्मदिट्ठी जीवाजीवे अयाणंतो---' आलाप पद्धती' पूर्वक अध्यात्मन्यायदीपिका का स्वाध्याय, ६ द्रव्य, ७ तत्व, ९ पदार्थ, उपादान, निमित्त के वस्तुनिष्ठ विज्ञान/ज्ञान से ही अभिष्ट सिद्धि है--मोक्षरुपी सुंदरी से अनंत कालतक अनंत अतीन्द्रिय आनंद की प्राप्ति है- एसे महान रत्न सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिये स्वत: युक्तीयों से परिक्षा पूर्वक ही तत्व निर्णय जरुरी है। --ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    हे भव्य! तू अरस,अरुप,अगंध,अव्यक्त, चेतनामय, अशब्द, अलिङ्गग्रहण और अनिर्दिष्टसंस्थानमय आदि लक्षणों से निज प्रभु को स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से जाण तभी तेरी षट्कारक क्रियायें, प्रक्षाल, अभिषेक, पंचपरमेष्ठि को नमस्कारादि क्रियायें सार्थक एवं कार्यकारी है अन्यथा निरर्थक है, यह तू पक्का निर्णय कर-------न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धि:। अंतरंग चिंतन क्रियासे ही पुजन, प्रक्षाल, अभिषेक, धर्म, इन्द्रिय विजय, मोह विजयादि,अतीन्द्रिय सुखादि है---बाह्य व्यवहारिक क्रियाकांड में यह चिंतन ही अत्यावश्यक है---ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    हे भव्य! तू अरस,अरुप,अगंध,अव्यक्त, चेतनामय, अशब्द, अलिङ्गग्रहण और अनिर्दिष्टसंस्थानमय आदि लक्षणों से निज प्रभु को स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से जाण तभी तेरी षट्कारक क्रियायें, प्रक्षाल, अभिषेक, पंचपरमेष्ठि को नमस्कारादि क्रियायें सार्थक एवं कार्यकारी है अन्यथा निरर्थक है, यह तू पक्का निर्णय कर-------न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धि:। अंतरंग चिंतन क्रियासे ही पुजन, प्रक्षाल, अभिषेक, धर्म, इन्द्रिय विजय, मोह विजयादि,अतीन्द्रिय सुखादि है---बाह्य व्यवहारिक क्रियाकांड में यह चिंतन ही अत्यावश्यक है---ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    एकत्वविभक्त निजध्रुव हि बडेध्रुवबाबा होकर इस लोक के सर्वोत्तम महाप्रभु,अकृत्रिम, शाश्वत एवं अन्य पर्यायादि पर द्रव्य से विभक्त/अन्य है। उसको जानो- तो सर्वार्थसिद्धि है।-- --ॐ नम:ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    तू अचिन्तध्रुवबाबा है।, अभि प्रतिती करो। ॐ नम:। मै स्वत: सिद्ध हूॅं, परत: नहीं, क्षणिक सिद्ध नहीं------ अभि प्रतिती करो। ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    वस्तुनिष्ठ सम्यक् ज्ञान के लिए--आलाप पद्धती के अध्ययन पूर्वक अध्यात्मन्यायदीपिका का स्वाध्याय करो। ॐ नम:। *👉 आलाप-पध्दति ( हिन्दी)-आ.पं.श्री. अनिलजी दुरुगकर, पुणे प्रवचन Link 👇*: ruclips.net/p/PLDzcmDTVXTQfOJU6BYlsDQdXZiHELQeBy ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    भूदत्थमस्सिदो खलु सम्मादिट्ठी हवदि जीवो।------ जो पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुट्ठं--पस्सदि जिणसासणं सव्वं।।----- आगम भाषा पूर्वक अध्यात्म भाषारुप वस्तुनिष्ठ समिचिन ज्ञान परमावश्यक---न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धि:। ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    निज शुद्धात्मानुभव हि निश्चय स्तुति --इन्द्रिय विजय, मोह विजय आदि है, ४ थे गु. से यह प्रगट होता हि है।अनन्त काल से यह उपाय हि किया नहीं----अभी इसी समय प्रयोग करो---ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    जो मोहं तु जिणित्ता णाणसहावाधियं मुणदि आदं। तं जिदमोहं साहुं परमट्ठवियाणया बेंति।। शाश्वत स्वत:सिद्ध प्रभु को स्वसंवेदन प्रत्यक्ष प्रामाण्य के साथ जानने से हि ४ गु से जितमोह &जितेन्द्रिय होते है। अनंत काल से यह उपाय किया नहिं --- अभि इसी समय प्रयोग करो---ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    जो इंदिये जिणित्ता णाणसहावाधियं मुणदि आदं। तं खलु जिदिंदियं ते भणंति जे णिच्छिदा साहू।। शाश्वत स्वत:सिद्ध प्रभु को स्वसंवेदन प्रत्यक्ष जानने से हि ४ गु से जितेन्द्रिय होते है। अनंत काल से यह उपाय किया नहिं --- अभि इसी समय प्रयोग करो---ॐ नम:।ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    अरे प्रभु तू शाश्वत स्वयम सिद्ध प्रभु है, ध्रुव बडे बाबा है-- बाकी अनंत सिद्ध एवं तेरी पर्याय में प्रगट होने वाला सिद्ध कृतक/कार्य सिद्ध, परत: सिद्ध, क्षणिक सिद्ध /अनित्य सिद्ध है--अकृतक/अकृत्रिम /स्वयम सिद्ध प्रभु का आश्रय लो---तब तक इंन्द्रिय & मोह विजय होता हि नहीं-यह बात समझना प्रभु!!!--न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धि:। ॐ नम:। ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    स्वयम सिद्ध प्रभु का आश्रय लो---तब तक इंन्द्रिय विजय& मोह विजय होता हि नहीं-यह बात समझना प्रभु!!!--न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धि:। ४ थे गु से हि यह प्रगट होता है---ऐसा ही वस्तुस्वरुप है।--- ॐ नम:।ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    जिनवाणी मे मार्गणा, जीवस्थान, पर्याप्ति, गुणस्थानादि सभी कथन ध्रुवके लिये संकेत है, यह न समझते हुए मार्गणादि ज्ञेयों में ही अटके रहे--निजध्रुव प्रभु का निर्णय किया हि नहीं--अरे रे --रे--प्रभु! करके सर्वप्रथम द्रव्यानुयोग का हि स्वाध्याय करो---इस जीवको अनंत कालसे ज्ञेयों में हि अटक ने कि आदत लगी हुई है।---समझना प्रभु समझना २---समयसारादि सभी अध्यात्मिक ग्रंथ सर्वप्रथम अप्रतिबुद्ध को प्रतिबुद्ध बनाने के लिए लिखे है ,और प्रतिबुद्ध का लिए नहीं है, इसका विरोध करने वाले स्वयं व्यवहाराभासी एवं मिथ्यादृष्टि है। यह बात समझकर अपना कल्याण कर लेना----- ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    ध्यान का विषय--शुद्धनिश्चय(अभेदवृत्ती) नय विषय का समिचिन लक्षण क्या? --स्वसंवेदन प्रत्यक्ष मति-श्रुत प्रमाण ज्ञानका लक्षण क्या? ---- यह अति शिघ्रता से जानकर परिक्षा करो---इस काल में आयु अल्प होती है---समझना--इसके लिए बाह्य त्याग कि आवश्यकता नहीं---न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धि:। अंतरंग क्रियासे ही धर्म, इन्द्रिय विजय, मोह विजयादि,अतीन्द्रिय सुखादि है---बाह्य व्यवहारिक क्रिया से नहीं---ॐ नम:। ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    अनादि,नित्य,स्वयम सिद्ध,निजध्रुवप्रभु को /निजध्रुवबाबा को स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से प्रमाण करने पर हि इंन्द्रियविजय, मोह विजय, सर्व दु:ख से मुक्ति, प्राणी संयम, इंन्द्रिय संयम आदि होता है, अन्यथा ३ काल में भी नहीं---शाश्वत निजध्रुवबाबा हि शरण है 2---दृष्टि के विषय कि लक्षण पूर्वक परिक्षा करो--ॐ नम:। ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    जो2 वचन या वाक्य है वह 2 नय हि होता है प्रमाण नहीं ➡️ 📍एक धर्म की मुख्यता से संपुर्ण धर्मि का कथन ( प्रमाण वाक्य) या 📍एक विशिष्ट धर्म का कथन (नय वाक्य) होता है। ये दोनो स्वार्थ या परार्थ होते है और छद्मस्थ के लिए- प्रमाण स्वार्थ यानि अनिर्वचनिय (ज्ञानात्मक)हि होकर इसका "कुछ (कतिपय) धर्मात्मक धर्मि/द्रव्य विषय रहता है। प्रभु---यह भेद अच्छी तरह से समझना-- जिनवाणी पढते समय या सुनते समय आपको नय हि प्राप्त होने वाले है, प्रमाण नहीं---यह अब श्रोता कि जिम्मेदारी है कि क्या अर्थ ग्रहण करना ?---करके सर्वप्रथम वस्तुस्वरुप (आगम भाषा) का अच्छे से ज्ञान करलो---तो आगे सब सरल है---ॐ नम:। ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    स्वसंवेदन प्रत्यक्ष मति/श्रुत प्रमाण ज्ञान पर्याय और प्रमाण वाक्य ( अभेदवृत्ती, निश्चय नय) मति/श्रुत नयज्ञान पर्याय में विषय भेद है, --- सुक्ष्मता से समझना--दोनों के भी विषय का नाम निक्षेप सरिखा/ समान होने से अटकना मत--दोनों कि समिचिन व्याख्या पर चिंतन पूर्वक परीक्षा करो--- प्रमाण का विषय "कुछ गुणात्मक गुणी है" एवं नय का विषय "एक गुणात्मक गुणी है" यह भेद अच्छी तरह समझना -- ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    "---तथा सति ज्ञानमात्रादेव बन्धनिरोध: सिध्देत्।--आ.ख्या.71, "---कथं ज्ञानमात्रादेव बन्धनिरोध इति चेत्" आ.ख्या गा 72, "कथं शुद्धात्मोपलम्भादेव संवर इति चेत्---आ.ख्या गा. 186 ----संज्ञी पंचेन्द्रियपणा और वस्तुस्वरुप का ज्ञान यहि बाह्य पात्रता ---अन्य शरिरादि बाह्य क्रियाओं कि, बाह्य व्रत नियमादि कि सम्यग्दर्शन के लिए आवश्यकता नहीं---समझना2---छल ग्रहण न करते हुए समझकर मनुष्य जन्म शिघ्र सार्थक करना--ॐ नम:। ॐ ह्रीं टङ्कोत्कीर्णपरमात्मस्वरुपसमयसाराय नम:। टङ्कोत्कीर्णस्वरुपोSहम्। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    हे प्रभु! हे भगवन! ----सम्यग्दर्शन प्राप्ति के लिए संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्ति से पूर्णता सहित ४ गति के जीव और समिचिन वस्तुस्वरुप का ज्ञान यहि पात्रता है। ----अन्य कोई बाह्य व्रतादि, नियम आदि शरिरादि क्रियाओं के पात्रता कि आवश्यकता हि नहीं है 2। ---यह बात पक्की समझना २--अनंत काल से तू यह बाह्य व्यवहारिक पात्रता के विकल्प द्वारा ठगा जा रहा है-- और अनंत दु:ख को प्राप्त हो रहा है। ---इसके लिए आगम प्रमाण-- "---तथा सति ज्ञानमात्रादेव बन्धनिरोध: सिध्देत्।--आ.ख्या.71, "---कथं ज्ञानमात्रादेव बन्धनिरोध इति चेत्" आ.ख्या गा 72, "कथं शुद्धात्मोपलम्भादेव संवर इति चेत्---आ.ख्या गा. 186 --सम्यग्दर्शन के साथ हि व्यवहार का जन्म होकर उत्तरोत्तर बाह्य क्रियाये अपने आप हो जाति है---करनी नहीं पडती--छल ग्रहण मत करना- सुक्ष्मता से समझना--ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    चत्ता पावारंभं समुट्ठिदो वा सुहम्मि चरियम्मि। ण जहदि जदि मोहादी ण लहदि सो अप्पगं सुद्धं।। ७९ ।।प्रवचनसार ➡️पापारंभ को छोडकर शुभ चारित्रमें उद्यत होने पर भी यदि जीव मोहादिको नहीं छोडता यानि स्वसंवेदन प्रत्यक्षसे शुद्ध निजात्मा को प्रमाण नहीं करता, तो वह शुद्ध आत्माको ( सम्यग्दर्शन) को प्राप्त नहीं होता।----अरे रे---2--प्रभु--अनंत काल से तू जिसका तुझमें अत्यन्त अभाव है ऐसे शरिरादि,शुभ-अशुभादि सभी भावों से पात्रता मानता है?--यह कितना बडा अचरज है!---तेरा समिचिन वस्तुस्वरुप का ज्ञान एवं पर्याप्ति से पूर्ण संज्ञी पंचेन्द्रियता हि तेरी पात्रता है---निज प्रभु को शिघ्र जाणो-- प्रयोगात्मक बनो--भ्रम मिटावो तो अत्यन्त सरल है-----ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    ध्रुव में ध्रुव है, पर्यायादि पर नहीं-- ॐ नम: जैनं जयतु शासनम्। I am the greatest god यह मै इस विश्व का सर्वोत्तम, महाप्रभु, महादेव, निजनित्यध्रुवबाबा हूॅं।-------जय जिनेन्द्र। ॐ ह्रीं निजनित्यध्रुवबाबारुपमहादेवस्वरुपोsहम्। ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    📢 जं अण्णाणी कम्मं खवेदि भवसयसहस्सकोडीहिं। तं णाणी तिहिं गुत्तो खवेदि उस्सासमेत्तेण।। ➡️ जो कर्म अज्ञानी लक्षकोटि भवोंमें खपाता है, वह कर्म ज्ञानी तीन प्रकार ( मन-वचन-काय) से गुप्त होनेसे उच्छ्वासत्रमें खपा देता है।--भावार्थ:-निजध्रुवरुपमहादेव को स्वसंवेदन प्रत्यक्ष को प्रमाण करने का उच्छ्वास मात्र काल का फल---ॐ नम:। ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    प्रमाणवाक्य-सकलादेशवाक्य-प्रमाणसप्तभंगीका वाक्य --अतर्गत सभी नय खंडित नहीं होते वे सभी अखंडित हि होते है, क्योंकि एकधर्ममुखसे धर्मि को विषय करते हैं। और अपने स्वरुप कि अपेक्षासे विकलादेशी कहें जाते है। जयधवल १ पृ १८५-६ "एक‌धर्मप्रधानभावेन साकल्येन वस्तुन: प्रतिपादकत्वात्।----" और नयवाक्य-विकलादेश वाक्य-नय सप्तभंगीका वाक्य के अंतर्गत सभी नय खंडित हि होते है, क्योंकि एकधर्म का हि कथन करते हैं।--जयधवल १-पृ १८५-६ "एक‌धर्मविशिष्टस्य एव वस्तुन: प्रतिपादकत्वात्।"---वस्तुस्वरुप का ज्ञान सटिक और स्पष्ट रहा कि आगें एकदम सरल होता है।------ॐ नम:। ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    शुद्ध-अशुद्ध सभी पर्याय रहित और अनंत परद्रव्य रहित निजनित्यध्रुवबाबा के साथ प्रत्यक्ष प्रमाण ज्ञान का अभिसन्धान बुद्धीपूर्वक करने से हि सकलार्थसिद्धि है।---झाणं (ज्ञानं) हवे सव्वं---जिनवाणी में कभी श्रद्धा कि मुख्यता से और कभी चारित्र कि मुख्यता से कथन होता है, उस समय समझना कि तीनों एक हि समय में होने से, अपेक्षा से कथन है---किन्तु बुद्धिपूर्वक निजध्रुव प्रभु को जाननें का पुरुषार्थ तो कर्ता रुपसे ज्ञान को हि करना है। अन्य सभी गुण कर्म साधन उत्पत्ती हि होती है। यह बात अच्छि तरह से समझनें से मोक्षमार्ग कि शुरुवात होती है।------ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    अकृत्रिम--शाश्वत--अनादिअनंत--स्वयम सिद्धनिज प्रभु का आश्रय लेनेपर ही मनुष्यभव सालंकृत है --" जो शुद्ध-अशुद्ध पर्यायादि सहित पुद्गल में फिदा है वह गधा है, और जो अकृत्रिम निज स्वयम सिद्ध प्रभु में फिदा है, वह स्वयम शाश्वत खुदा है। खुदा है।--- प्रयोग करना सिखलो २-- ॐ नम:।--जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    यह मै---इदम्--आनंद का शाश्वत कंद-अकृत्रिम--जिनबिम्ब--ईश्वर--यानि नंदिश्वर हूॅं।--प्रभु स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से प्रतिती करके प्रमाण करो २---प्रयोग करो २--ॐ नम:। --स्वयम सिद्ध अकृत्रिम नंदिश्वर स्वरुपोSहम्।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    अवग्रह मतिज्ञान सम्यक् प्रमाण ज्ञान पर्याय होकर दर्शनोपयोग उपरांत निजशुद्धात्म प्रभु को स्पष्ट, संशय रहित जानति है। आगम प्रमाण आ.अमृतचंद्राचार्य की तत्वार्थसूत्र की टीका। तथा जयधवल १२ सूत्र ९८ --- पर-अपर गुरुओं के माध्यम से प्राप्त हुआ सर्वज्ञ मत कौन से भव्य जीवों को मान्य नहीं होगा?-- अवश्य मान्य होगा ही--होगा।--ॐ नम:।--स्वयम सिद्ध अकृत्रिम नंदिश्वर स्वरुपोSहम्।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    ६ द्रव्य के लक्षण पूर्वक ज्ञान अर्जित करके उसे अपने निज जीवन में उपयोगात्मक प्रयोग करो, निज शुद्धात्मप्रभु को 'अकृतक-अकृत्रिम जिनबिम्ब' एसा स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से प्रमाण करो--ॐ नम:। --स्वयम सिद्ध अकृत्रिम नंदिश्वर जिनबिम्ब स्वरुपोSहम्।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    ६ द्रव्य के लक्षण के समिचिन ज्ञान से निजशुद्धात्मप्रभु का साक्षात्कार होगा। ---ॐ नम:।--स्वयम सिद्ध अकृत्रिम नंदिश्वर जिनबिम्ब स्वरुपोSहम्।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    भो प्रभु! भो आयुष्यमान! प्रथमानुयोग में अव्रती श्रावक श्रेणिक राजा को जघन्य ध्यान से क्षायिक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के कथन से आपका समाधान हो जाना चाहिये। आगे भविष्य में मुनिराजों के गु. में मुख्य ध्यान होगा ही होगा---रत्नकंरण्ड श्रावकाचारादि (गा.सू.३३-गृहस्थो मोक्षमार्गस्थो---) आदि ४ रो अनुयोंगें में हजारों उदाहरणों से अव्रती जीवों कों जघन्य ध्यान एवं सम्यग्दर्शन की सिद्धी होती है। -----ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    वस्तु विचारत ध्यावते,मन पावे विश्राम। रस स्वादत सुख उपजै,अनुभव याको नाम।---अ sहा s हा s ओs हो s हो s प्रभु वस्तु स्वरुप के चिंतवन में सविकल्प-- निर्विकल्प --सविकल्प--- निर्विकल्प दशा चलती ही रहती है। ---निर्विकल्प दशा का ऐसा जघन्य ध्यान अव्रती अवस्थासे होता है-- स्वाद चखके तो देखो-प्रभु!---करके सर्वप्रथम वस्तुस्वरुप के ज्ञान के लिए आलाप पद्धती पूर्वक अध्यात्मन्यायदीपिका का अभ्यास करो। ---ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    ---कह होदि सम्मदिट्ठी जीवाजीवे अयाणंतो---' आलाप पद्धती' पूर्वक अध्यात्मन्यायदीपिका का स्वाध्याय, ६ द्रव्य, ७ तत्व, ९ पदार्थ, उपादान, निमित्त के वस्तुनिष्ठ विज्ञान/ज्ञान से ही अभिष्ट सिद्धि है--मोक्षरुपी सुंदरी से अनंत कालतक अनंत अतीन्द्रिय आनंद की प्राप्ति है- एसे महान रत्न सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिये स्वत: युक्तीयों से परिक्षा पूर्वक ही तत्व निर्णय जरुरी है। --ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    तत्वानुशासन गाथा.सूत्र ४६,४७ ------धर्मध्यानस्य चत्वारस्तवार्थे स्वामिन: स्मृता:।------अप्रमत्तेषु तन्मुख्यमितरेष्वौपचारिकं।। --#प्रवचनसार-- गा ८० शीर्षक--आ.जयसेनाचार्य-- " यदुक्तं शुद्धोपयोगाभावे मोहादिविनाशो न भवति,मोहादि विनाशाभावे शुद्धात्मालाभो न भवति, तदर्थमेवेदानीमुपायं समालोचयति।" ➡️ ४,५,६, ७ गुणस्थानवर्ती जीवों को धर्म्यध्यान के स्वामी माना है। वह धर्म्यध्यान मुख्य और जघन्य होता है। ----शुद्धोपयोग के अभाव में मोह नाश तथा शुद्धात्मलाभ (सम्यग्दर्शन) नहीं होता है। ---श्रेणिक राजा को ४ थे गु. में जघन्य धर्म्यध्यान पूर्वक उपशम तथा क्षायिक सम्यग्दर्शन प्राप्ति का जिनागम में उल्लेख है।----ॐ नम:। ---ॐ नम:।जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    अनादि मोह से अत्यन्त अप्रतिबुद्ध/अज्ञानी के लिये यह समयसार है? या अत्यन्त ज्ञानी के लिये? यह गाथा सूत्र 38 की आ.ख्या.टीका से आप खुद परिक्षा करके निर्णय करो! गलत उपदेश सुनकर यह मनुष्य भव व्यर्थ मत गमाना--प्रथमानुयोग भाषा, चरणानुयोग भाषा, करणानुयोग भाषा, द्रव्यानुयोग भाषा पद्धती के लक्षण जान लो--आयु और बुद्धी अल्प है करके सर्वप्रथम द्रव्यानुयोग से निजात्म प्रभु को स्वसंवेदन से प्रत्यक्ष प्रमाण करने की कला सिख लो २-परिक्षा करना सिखो प्रभु! सिखो२---ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    भो प्रभु! भो आयुष्यमान! समवशरण में दिव्यध्वनि तिर्यंच पशु सहित सबके लिए खिरती है। वे तिर्यंच पूर्व में मांसभक्षी भी होते है।फिर भी सबके लिए खिरती है, इस तर्क शुद्ध व्यवस्था से धवला, जयधवला, महाधवला, समयसार के स्वाध्याय की अव्रती को निषेध क्यों? कतिपय व्रती भी तो जिनवाणी का गलत अर्थ निकालकर 'मिथ्यात्व से बंध होता नहीं' एसी मिथ्या प्ररुपणा करते है, और श्रेणिक, तिर्यांच्या दि अनंत जीव भी सम्यक् अर्थ निकालकर मोक्ष- -मार्गस्थ हो जाते है। करके संपूर्ण जिणवानी का सभी को स्वाध्याय के लिए निषेध अतिअयोग्य है।-----ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    प्रवचनसार गाथा सूत्र 80 के तात्पर्यवृत्ती शिर्षक में लिखा है, की शुद्धोपयोग के अभाव में मोह का विनाश नहीं और मोह के विनाश के अभाव में निश्चयसम्यग्दर्शन नहीं ही होता। बारस अणुपेक्खा गाथा सूत्र 64 में बताया है की शुद्धोपयोग--धर्म्यध्यान & शुक्लध्यान दो प्रकारका होता है। प्रवचनसार गाथा सूत्र 14 में मुख्य श्रमणों के मुख्य धर्म्यध्यान के वर्णन से तत्वार्थसूत्र एवं तत्वानुशासन में बताये हुए धर्म्यध्यान के स्वामि 4 से 7 गु. में से 4 थे गुणस्थान में यथायोग्य जघन्य धर्म्यध्यान का निषेध तो नहीं ही होता। यह अपेक्षा भेद जो निकट भव्य जीव है उन्हे समझना ही होगा। अपेक्षाकृत कथन यह जिणवानी का प्राण है। --भो प्रभो महापद्म प्रथम तीर्थंकर भगवान का जीव अभी प्रथम नरक में है, वे श्रेणिक राजा चतुर्थ गुणस्थान वर्ती --जघन्य शुद्धोपयोग से प्रथमोपशम, क्षयोपक्षम एवं पश्चात क्षायिक सम्यग्दृष्टि हुए थे, इसका वर्णन प्रथमानुयोग में सर्व प्रसिद्ध होनें पर भी, अव्रती श्रावक को शुद्धोपयोग का अभाव कहना यह जिनाज्ञा का घोर उल्लंघन है। यह बात तो एसी हुई कि साक्षात कुंदकुंदाचार्य के प्रधान शिष्य तत्वार्थसूत्र में लिखते है-'मिथ्यादर्शनाविरतीप्रमादकषाययोगा बंधहेतव:। और कोई जिनाज्ञा के विरुद्ध कहता है की मिथ्यात्व से बंध नहीं होता तो क्या वे तथाकथित महानुभाव जैन मार्गी है????? ॐ नम:। जैनं जयतु शासनम्।🕉️🕉️🕉️💐💐💐🙏🙏🙏Jay jinendra,Jay jinwani.ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    निजध्रुवप्रभु के प्रत्यक्ष स्वसंवेदन को छोडकर सभी अध्यवसानादिभाव पुद्गल स्वभावमय है।---अथ चिद्रुपप्रतिभासेSपि रागाद्यध्यवसानादय: कथं पुद्गलस्वभावा भवन्तीति चेत्।---कथं चिदन्वयप्रतिभासेSप्यध्यवसानादय: पुद्गलस्वभावा इति चेत्----ॐ नम:। शुद्धचिद्घनमहोनिधिस्वरुपोSहम्। ॐ ह्रीं उत्तमतपधर्मांगाय नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    यदि अध्यवसानादि भाव पुद्गलस्वभाव हैं तो सर्वज्ञके आगममें उन्हें जीवरुप क्यों कहा गया है?----यद्यध्यवसानादय: पुद्गलस्वभावास्तदा कथं जीवत्वेन सूचिता इति चेत्-----अथ यद्यध्यवसानादय: पुद्गलस्वभावास्तर्हि रागी द्वेषी मोही जीव इति कथम् जीवत्वेन ग्रन्थान्तरे प्रतिपादिता इति प्रश्ने प्रत्युत्तरं ददाति---ज्ञानानन्दसौधस्वरुपोSहम्। ॐ ह्रीं उत्तमत्यागधर्मांगाय नम:।----ॐ नम:।

  • @108Veersagarji
    @108Veersagarji 8 месяцев назад

    हे भव्य! तू अरस,अरुप,अगंध,अव्यक्त, चेतनामय, अशब्द, अलिङ्गग्रहण और अनिर्दिष्टसंस्थानमय आदि लक्षणों से निज प्रभु को स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से जाण तभी तेरी षट्कारक क्रियायें, प्रक्षाल, अभिषेक, पंचपरमेष्ठि को नमस्कारादि क्रियायें सार्थक एवं कार्यकारी है अन्यथा निरर्थक है, यह तू पक्का निर्णय कर-------न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धि:। अंतरंग चिंतन क्रियासे ही पुजन, प्रक्षाल, अभिषेक, धर्म, इन्द्रिय विजय, मोह विजयादि,अतीन्द्रिय सुखादि है---बाह्य व्यवहारिक क्रियाकांड में यह चिंतन ही अत्यावश्यक है---ॐ नम:।